शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए लिवर का स्वस्थ बना रहना बेहत जरूरी है। भोजन को पचाना हो या ग्लूकोज और प्रोटीन का निर्माण करना…ये सारा काम लिवर ही करता है। लेकिन अगर लिवर ही स्वस्थ न रहे तो तमाम मुश्किलें पैदा हो जाती हैं। लिवर से जुड़ी तमाम बीमारियों में फैटी लिवर सबसे आम है।
गैस्ट्रो लिवर हॉस्पिटल, कानपुर के डॉ. वीके मिश्रा कहते हैं, ‘दुनिया की जितनी जनसंख्या है, उन सब का अगर जनरल अल्ट्रासाउंड करवाएं तो 25 फीसद जनसंख्या को फैटी लिवर निकलना निश्चित है। वे कहते हैं कि फैटी लिवर की समस्या इतनी ज्यादा है कि अगर डायबिटीज और अर्थराइटिस के मरिजों को मिला दिया जाए तो भी फैटी लिवर का आंकड़ा इनसे ज्यादा होगा।
क्या है फैटी लिवर? सामान्य भाषा में कहें तो लिवर में अधिक फैट का जमा होने को फैटी लिवर कहते हैं। अगर फैट का वजन लिवर से 5 प्रतिशत या उससे अधिक होता है तो भी उसे फैटी लिवर कहेंगे। फैटी लिवर दो तरह के होते हैं।
फैटी लिवर के दो स्टेज: पहला- जो अधिक शराब के सेवन से होता है, इसे अल्कोहलिक फैटी लिवर कहते हैं। दूसरा वो फैटी लिवर जिसकी वजह अल्कोहल नहीं होती, उसे नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर कहते हैं। नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर में लिवर के अंदर फैट होता है लेकिन उससे खास नुकसान नहीं होता। लेकिन इसके बाद के स्टेजेस में परेशानी हो सकती है।
नॉन एल्कोहलिक में स्टेएटो हेपेटाइटिस इसका दूसरा चरण होता है। अगर इस वक्त न ध्यान दिया जाए तो मुश्किल हो सकती है। नतीजा सिरोसिस जो कि तीसरा चरण है, होने का खतरा होता है। जिसमें लिवर सिकुड़ जाता है और टाइट हो जाता है। लिवर की काम करने की क्षमता न के बराबर हो जाती है। सिरोसिस का भी इलाज न किया जाए तो लिवर कैंसर हो सकता है।
फैटी लिवर का खतरा किन्हें सबसे ज्यादा? एक्सपर्ट्स के मुताबिक जिनका वजन अधिक है उन्हें फैटी लिवर होने का डर रहता है। इसके अलावा डायबिटीज वाले मरीजों को खास कर टाइप 2 डायबिटीज मरीजों को फैटी लिवर का खतरा रहता है। हेपेटाइटिस सी और अधिक कोलेस्ट्रॉल में भी फैटी लिवर होने की संभावना बढ़ जाती है।