ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार थे। हालांकि उन्होंने अपने जीवन का पहला चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा था। इसके पीछे की मुख्य वजह थी उनकी मां विजयाराजे सिंधिया। विजयाराजे उन दिनों बीजेपी की बड़ी नेता थीं और पार्टी में उनकी अच्छी पकड़ भी थी। विजयाराजे बीजेपी की संस्थापक सदस्यों में भी थीं, लेकिन माधव राव सिंधिया इससे बिल्कुल भी खुश नहीं थे।
जनसंघ से क्यों अलग हुए थे माधव राव सिंधिया? वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रिग’ में इसका विस्तार से जिक्र किया है। राशिद किदवई लिखते हैं, ‘माधव राव सिंधिया को हमेशा मलाल रहता था कि उन्होंने जनसंघ क्यों जॉइन की। वह इसे अपनी बड़ी गलती मानते थे।’ जबकि माधव राव के करीबी दोस्त सरदार आंगड़े मानते हैं कि माधव राव के पार्टी से अलग होने की वजह साल 1972 का विधानसभा चुनाव था, जिसमें जनसंघ को करारी हार मिली थी।
राशिद किदवई लिखते हैं, सिंधिया परिवार के कई लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि राजमाता और माधव राव के बीच मतभेद 1975 में इमरजेंसी के बाद शुरू हुआ था। माधव राव सिंधिया को लगता था कि उनकी मां परिवार का सारा पैसा राजनीति पर लुटा रही हैं। वह अपनी मां से जनसंघ की फंडिंग और पैसों को लेकर काफी नाराज़ रहते थे। माधव राव के करीबी दोस्त के हवाले से राशिद किदवई लिखते हैं कि वह इसे देखकर भी दंग रह गए थे कि जय विलास से कई कीमती गहने तक गायब हो गए थे।
जनसंघ में रहने के लिए ब्लैकमेल करती थी विजयाराजे? माधव राव के करीबी दोस्त ने बताया था कि महल में सोने, चांदी और कीमती गहनों से भरा हुआ कुआं था जो धीरे-धीरे खाली होना शुरू हो गया था। माधव राव की निगाह में उनकी मां को बिजनेस की कोई परख नहीं थी क्योंकि उन्होंने बंबई स्थित महंगी प्रोपर्टी को औने-पौने दाम पर बेच दिया था जबकि उसकी बाजार में कीमत बहुत ज्यादा थी। 30 सिंतबर 1991 को पत्रकार एन.के सिंह से बात करते हुए माधव राव ने कहा था कि मां जबरन उन्हें जनसंघ में रखना चाहती है और इसके लिए वह उन्हें ब्लैकमेल तक कर रही थीं।
बता दें, माधव राव सिंधिया ने साल 1977 का आम चुनाव गुना सीट से निर्दलीय लड़ा था और जीत हासिल की थी। इससे पहले वह जनसंघ के टिकट पर आम चुनाव जीते थे। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर इसी सीट से साल 1980 में चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में भी उन्हें ऐतिहासिक जीत मिली थी। साल 1984, 1989 और 1991 के चुनाव में भी माधव राव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में जैन हवाला कांड में नाम आने के बाद उनकी कांग्रेस आलाकमान से तल्खियां बढ़ गई थीं और माधव राव ने केंद्रीय मंत्री के पद से भी इस्तीफा दे दिया था।
