ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया का 25 जनवरी 2001 को निधन हो गया था। विजयाराजे का अंतिम संस्कार उनके बेटे माधव राव सिंधिया ने किया था। राजमाता के देहांत के 13 दिन बाद विजयाराजे सिंधिया के राजनीतिक सलाहकार रहे बाल आंग्रे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। यहां बाल आंग्रे ने वसीयत दिखाई जिसे देखकर सबके होश उड़ गए। आंग्रे ने दावा किया कि विजयाराजे ने साल 1985 में ये वसीयत खुद अपने हाथ से लिखी थी।

वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने अपनी किताब ‘माधव राव सिंधिया: ए लाइफ’ ने इसका विस्तार से जिक्र किया। सांघवी ने लिखा, वसीयत पर दो गवाहों प्रेमा वासुदेवन और एस गुरुमूर्ति के हस्ताक्षर थे। वसीयत में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने माधव राव की तुलना विपक्षियों के ‘औजार’ से की थी। राजमाता ने लिखा था, माधव राव अपने राजनीतिक आकाओं के गुलाम बन गए हैं। मेरे समर्थकों को परेशान करने में वह उनके औजार की भूमिका निभा रहे हैं।

राजमाता और माधव राव के रिश्तों में तल्खियों की एक झलक ये वसीयत भी थी। इसमें विजयाराजे सिंधिया लिखती हैं, अब माधव राव इस लायक भी नहीं रहे हैं कि वो मेरे मृत शरीर का अंतिम संस्कार कर सकें। हालांकि तमाम विरोधों के बाद भी माधव राव सिंधिया ने ही अपनी मां का अंतिम संस्कार किया था। माधव राव सिंधिया ने कोर्ट में वसीयत में चुनौती दी और फरवरी 1999 में लिखी राजमाता की एक और वसीयत कोर्ट में पेश की थी।

क्यों खराब थे माधव राव और विजयाराजे के रिश्ते? राशिद किदवई ने अपनी किताब द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रिग’ मां और बेटे के खराब रिश्ते पर विस्तार से चर्चा की है। राशिद किदवई लिखते हैं, दोनों के बीच मतभेद के कई कारण थे। इसमें एक बड़ा कारण था विजयाराजे सिंधिया का बाल आंग्रे पर जरूर से ज्यादा विश्वास करना। माधव राव ने वरिष्ठ पत्रकार एन.के सिंह से बात करते हुए कहा था कि मेरी मां के ऊपर बाल आंग्रे पर बहुत गहरा प्रभाव है।

दूसरी बड़ा कारण था राजमाता विजयाराजे सिंधिया का राजनीति पर हद से ज्यादा पैसा बहाना। माधव राव को लगता था कि उनकी मां परिवार की कीमती चीजें बेच रही है। इसमें मुंबई में भी सिंधिया परिवार की महंगी प्रोपर्टी भी थी।