Sawan ke geet: सावन, झूले और गीतों का अनूठा संगत यूं तो अब कम ही देखने को मिलता है। पहले की तरह अब बागों में उतने झूले नहीं पड़ते। महिलाएं एक जगह जमा होकर सावन की मल्हार नहीं गाती हैं। लेकिन फिर भी इन परंपराओं को कुछ लोगों ने जीवंत रखा है। मेट्रो सिटी में भले ही ये चीजें कम देखने को मिलती हों लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में सावन को लेकर अभी भी उत्साह और उमंग देखने को मिलती है। शाम होते ही कहीं भजन-कीर्तन शुरू हो जाते हैं तो वहीं कहीं झूलों पर बैठकर सावन के गीत गाए जाते हैं। ऐसे में यहां हम आपके लिए सावन के टॉप 5 गीत लेकर आए हैं। अपनी पसंद के मुताबिक आप यहां से लिरिक्स भी नोट कर सकती हैं।

सावन गीत-1

सावन आया अम्मा मेरी रंग भरा जी,
ए जी कोई आई हैं हरियाली तीज ।।
घर-घर झूला झूलें कामिनी जी ।
बन बन मोर पपीहा बोलता जी,
एजी कोई गावत गीत मल्हार ।।
कोयल कूकत अम्बुआ की डार पें जी ।
बादल गरजे, चमके बिजली जी,
एजी कोई उठी है घटा घनघोर,
थर-थर हिवड़ा अम्मा मेरी कांपता जी ।।

सावन गीत-2

सावन का महीना, झुलावे चित चोर, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
मनवा घबराये मोरा बहे पूरवैया, झूला डाला है नीचे कदम्ब की छैयां।
कारी अंधियारी घटा है घनघोर, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
सखियां करे क्या जाने हमको इशारा, मन्द मन्द बहे जल यमुना की धारा।
श्री राधेजी के आगे चले ना कोई जोर, धीरे झूलो राधे, पवन करे शोर।
मेघवा तो गरजे देखो बोले कोयल कारी, पाछवा में पायल बाजे नाचे बृज की नारी।
श्री राधे परती वारो हिमरवाकी और, धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
सावन का महीना झूलावे चित चोर……….।।

सावन गीत-3

कहां से आए बदरा
घुलता जाए कजरा
कहां से आए बदरा
घुलता जाए कजरा
पलकों के सतरंगे दीपक
बन बैठे आंसू कि झालर
मोती का अनमोलक हीरा
मिट्टी में जा फिसला
कहां से आए बदरा …
नींद पिया के संग सिधारी
सपनों की सूखी फुलवारी
अमृत होठों तक आते ही
जैसे विष में बदला
कहाँ से आए बदरा …

सावन गीत-4

सावन में झूलाओ झूला हमारे बांके बिहारी को
बांके बिहारी को हमारी राधा प्यारी को।
निधि वन में तो झूला झूले बांके बिहारी जी
दे झोटा सब ब्रज नार हमारे बांके बिहारी को..
फूलों के बंगले में विराजे बांके बिहारी जी
मन भावन है श्रृंगार हमारे बांके बिहारी को ..
सब भक्तो के प्यारे हमारे बांके बिहारी जी
गुण गावो सब मिल आज हमारे बिहारी का
सावन महिना तीज हरियाली झूले बिहारी जी
राधे कृष्णा की जोड़ी लागे कितनी प्यारी लागे जी

सावन गीत-5

अरी बहना! छाई घटा घनघोर, सावन दिन आ गए ।
उमड़-घुमड़ घन गरजते ।
अरी बहना! ठण्डी-ठण्डी पड़त फुहार ।
बादल गरजे बिजली चमकती,
अरी बहना! बरसत मूसलधार ।।
कोयल तो बोले हरियल डार पे,
अरी बहना! हंसा तो करत किलोल ।।
वन में पपीहा पिऊ पिऊ रटै,
अरी बहना! गौरी तो गावे मल्हार ।।