प्रिया सिन्हा
एक आम महिला के लिए घर की छोटी-छोटी चीजें भी काफी अहम होती हैं और अगर वह छोटी सी चीज विदेश घूम कर आ गई हो तो वह और भी खास हो जाती है।
एक दिन की बात है जब दिल्ली में बिना मौसम ही बारिश ने दस्तक दे दी, मुझे जाना था दफ्तर, ऐसे मे तेज बारिश…मां ने कहा छतरी लेकर जाओ। अब लाडली बेटी होने के नाते मां की आज्ञा को यों नजरअंदाज तो नहीं कर सकती थी। उठा ली छतरी और निकल पड़ी दफ्तर को। गौर करने वाली बात यह थी की कि मां ने छतरी देते वक्त बार-बार एक ही बात पर जोर दिया कि छतरी गुमाना नही, एक ही छतरी है घर में जो पापा विदेश लेकर गए थे।
घर से दफ्तर दूर है, पहले दफ्तर तक जाने के लिए घर से आॅटो लेना होता है, फिर मेट्रो। मैंने आॅटो ले लिया। मेरे छाते से किसी को चोट न लग जाए इसलिए उसे मैंने हाथ में पकड़ लिया। सारे रास्ते ध्यान देती रही मैं कि छतरी छूटनी नहीं चाहिए।
पहुंच गई मैं मेट्रो स्टेश्न। दफ्तर को हो गई थी देर इसलिए काफी जल्दबाजी में थी। मेट्रो स्टेशन पर स्कैनिग मशीन के अंदर ही छतरी भूल गई और बैठ गई मेट्रो में। आधे रास्ते तक ख्याल नहीं आया कि मैं घर से मां का प्रिय छतरी भी लेकर आई थी। राजीव चौक पहुंच कर मुझे ख्याल आया, मैंने खुद को काफी कोसा कि ऐसी गलती मुझसे कैसे हो गई। मां का चेहरा डांटते हुए सामने मंडराने लगा। अब वापस भी नहीं लौट सकती थी क्योंकि दफ्तर को जो देर हो रही थी। ऐसे में मैंने अपने मन को समझाया कि छतरी लौटते वक्त ले लेंगे, अभी दफ्तर पहुंचना ज्यादा जरूरी है।
मन तो मन है…दफ्तर में भी मेरा दिमाग यही बोलता रहा अगर आज छतरी नहीं मिला तो तुम गई काम से। मैं बार-बार घड़ी की सुइयों की तरफ देखती और इंतजार करती कब मेरी छुट्टी हो और मैं छाते, ओह सॉरी ‘फॉरेन रिटर्न छाते’ के पास पहुंचूं।
आखिरकार वह वक्त आ गया जब मेरी छुट्टी हो गई। मैंने अपना सामान समेटा, बॉस को नमस्ते बोला और चल पड़ी। रास्ते में मां का फोन भी आ गया, मैंने सोचा कहीं छतरी गुम जाने का आभास मां को तो नहीं हो गया, लेकिन भगवान की कृपा से ऐसा कुछ नहीं हुआ। मां ने तो फोन सामान की लिस्ट बताने के लिए किया था जो मुझे दफ्तर से वापस होते वक्त लेकर जाना था। मैं अपने पूरे सफर में यही सोचती आई, अगर छतरी नही मिला तो मां को कैसे बताऊंगी। मेरा स्टेशन आ गया, मेट्रो का दरवाजा खुला और मेरे कदम तेजी से ऊपर स्कैनिंग मशीन की तरफ दौड़ पड़े। मशीन के पास एक गार्ड
भैया थे, मैने उनसे बड़े प्यार से बोला -भैया क्या आज सुबह स्कैनिंग मशीन के अंदर कोई छतरी रह गया था?
वह भैया मुझे देखकर मुस्कराए और कहा- हां सुबह एक छतरी मिला तो था जरूर। मैं बस यह सुनकर खिलखिला उठी। उन्होंने मुझे स्टेशन कंट्रोल रूम का रास्ता बताया और कहा वहां जाइए, आपका छतरी वहां जमा है। फिर क्या, मैं तेज कदमों से अपने विदेश-पलट छाते से मिलने चल पड़ी।
स्टेशन कंट्रोल रूम के अंदर मैं पहुची, वहां कुछ लोग हंसी-ठहाके करते नजर आए। मैंने उनसे अपने छाते की बात कही तभी वहां मौजूद मेट्रो स्टेशन मास्टर में से एक ने कहा – हां एक छतरी तो आज मिला था…। उन्होने एक छाते की तरफ देख इशारा करते हुए कहा कि क्या यह आपका छतरी है? मैं अपने छाते को देख फूली नहीं समाई और दौड़ पड़ी उस छाते को लेने। तभी वहां मौजूद एक मास्टर (मेट्रो मास्टर) ने कहा ऐसे कहां लेकर जा रही हैं…? मैंने पूछा- क्यों क्या हुआ?
उन्होंने कहा- हम कैसे मान लें कि यह आपका ही छतरी है? मुझे आया गुस्सा…। मैंने कहा- क्या भैया मुझे कोई सपना तो नहीं आ रहा था कि यहां कोई छतरी है…। एक छाते को लेकर इतना पंगा…।
मैं हैरान रह गई। फिर दूसरे मास्टर ने कहा कि मैडम ऐसा है कि हम आपको ऐसे नहीं दे सकते यह छतरी, क्या पता कल कोई और आया और वह कहने लगा कि यह छतरी उनका है तो?
मैंने भी कहा तो?
फिर उन्होने कहा-आप अपना कोई पहचान पत्र यहां जमा करो और अपना छतरी ले जाओ।
मैंने उन्हे अपना पहचान पत्र दिखाया लेकिन उनका मन इससे भी नहीं भरा। कहने लगे फोटो कॉपी कराकर यहां जमा कराएं। मैंने काफी गुजारिश की उनसे, पर वह अपनी बात से टस से मस तक नहीं हुए।
मैं मेट्रो स्टेशन के बाहर आई, वहा खड़े आॅटो रिक्शा चालक से पूछा कि इधर फोटो कॉपी किधर होता है। उसने कहा आप सीधे चले जाओ…मैं चलती गई..चलती गई! देर से ही सही लेकिन फोटो कॉपी वाली दुकान मिल ही गई। मैंने एक कॉपी कराई और तेजी से वापस हो ली। मेट्रो स्टेशन पहुंचते ही पहचान पत्र की फोटो कॉपी उस मेट्रो मास्टर को थमा दी मैंने। मेट्रो मास्टर ने पहले तो इधर-उधर ताक-झांक किया, फिर एक रजिस्टर निकाला और सारा विवरण मेरा लिख डाला।
लिखते-लिखते वह मास्टर मुझसे कहने लगा-देखिए मैडम, आपने कहा यह आपका है लेकिन कल कोई और आए और कहे कि यह उसका है तो हम लोग क्या करेंगे…यह हमारी ड्यूटी है।
मैंने समझी उसकी बात। सही बात तो कह रहे हैं। आखिर यह उसकी ड्यूटी ही तो है, मैंने प्यारी सी स्माइल दी और कहा- अब मैं अपनी छतरी ले लंू…। मुझे अपनी छतरी को जल्दी से अपने हाथों में लेने की बड़ी तीव्र इच्छा हो रही थी।
मास्टर ने कहा – जी जरूर।
छतरी को हाथ मे उठाते ही मैं खुशी से झूम उठी। ऐसा लगा मानो भगवानजी ने मेरी कोई मुंहमांगी मुराद पूरी कर दी हो। मैंने यह निश्चय किया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, मां की विदेश-पलट यह छतरी मैं हमेशा ठीक उसी प्रकार रखूंगी, जिस तरह एक मां अपने बच्चे का ध्यान रखती है। मेरे लिए अब से यह छतरी किसी अमूल्य तोहफे की तरह होगा।
