कांग्रेस की दिग्गज नेता सोनिया गांधी और राजीव गांधी की शादी साल 1968 में हुई थी। इस दौरान देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। लेकिन साल 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई थी और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बने थे। 20 मार्च 1977 को लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे और जनता पार्टी सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी। लेकिन इसका असर सोनिया गांधी पर बहुत ज्यादा पड़ा था।
वरिष्ठ पत्रकार रानी सिंह ने अपनी किताब ‘सोनिया गांधी: एन एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी लाइफ, एन इंडियन’ में 20 मार्च 1977 की रात को याद किया है जब नतीजों की घोषणा हुई थी। रानी ने इंदिरा की दोस्त पुपुल जयकर के हवाले से लिखा, ’19 महीने की इमरजेंसी के बाद चुनावों की घोषणा हुई थी। जेल में बंद किए गए सभी लोगों को रिहा कर दिया गया था। ऐसे में इंदिरा गांधी के खिलाफ एक विरोधी लहर तो थी।’
पुपुल याद करती हैं, ‘मैं 20 मार्च 1977 को सफदरजंग रोड पर ही थी। रात को नतीजों की घोषणा हुई थी। इंदिरा और संजय गांधी चुनाव हार चुके थे। संजय और मेनका उसी रात अमेठी से वापस लौटे थे। करीब 10.30 बजे इंदिरा गांधी ने फोन किया और डिनर के लिए बुलाया। राजीव और सोनिया को भी डिनर के लिए बुलाया गया और वह दोनों बहुत समय बाद आए। सोनिया को मैंने देखा तो वह रो रही थीं। राजीव का चेहरा भी बिल्कुल मायूस, गंभीर लग रहा था।’
सोनिया-राजीव गांधी ने नहीं खाई रोटी: पुपुल ने रानी को बताया था, ‘सब लोगों के लिए टेबल पर खाना लग चुका था। राजीव और सोनिया गांधी ने रोटी नहीं खाई। दोनों ने कुछ फल ही खाए। इंदिरा गांधी ने सलाद, कटलेट और सब्जी खाई थी।’ सोनिया गांधी कई मौकों पर इंदिरा गांधी की तारीफ कर चुकी थीं। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने सोनिया से इंटरव्यू में इंदिरा को लेकर सवाल पूछा था।
इसके जवाब में उन्होंने कहा था, इंदिरा गांधी का लोकतंत्र में पूरा विश्वास था। यही वजह थी कि 19 महीने की इमरजेंसी के बाद भी उन्होंने चुनाव की घोषणा की थी। ऐसा नहीं था कि उन्हें विरोधी लहर के बारे में नहीं पता होगा। लेकिन उन्होंने इसके बाद भी चुनाव कराने का फैसला किया जो उनकी विचारधारा और लोकतंत्र के प्रति विश्वास को दर्शाता था।