आजादी के समय भारत 500 से ज्यादा छोटी बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल और पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए देसी रियासतों को भारत में शामिल करना किसी चुनौती से कम नहीं था था। क्योंकि महाराजा लंबी-चौड़ी शर्तें भी रख रहे थे। इसकी जिम्मेदारी सरदार पटेल ने ली और वे वी.पी मेनन के साथ मिलकर राजा, रजवाड़ों, निजाम और महाराजाओं से मुलाकात करने लगे।

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एक ऐसा ही मामला जोधपुर रियासत का भी था जो एक पुराना और काफी बड़ा रजवाड़ा था। वहां का राजा हिंदू था और अधिकांश प्रजा भी हिंदू ही थी। माउंटबेटन के साथ एक विशेष भोज में जोधपुर के महाराजा ने भारत के साथ मिलने की इच्छी जाहिर की थी। लेकिन बाद में उसके दिमाग में किसी ने भर दिया था कि उसके राज्य की सीमा पाकिस्तान से भी छूती है, इसलिए वह वहां से बेहतर शर्तें मनवा सकता है। इसके बाद महाराजा ने मोहम्मद अली जिन्ना के साथ एक बैठक की।

बैठक में जिन्ना ने महाराजा के सामने कराची के बंदरगाह की सुविधा देने, हथियारों की निर्बाध आपूर्ति और अकाल-पीड़ित जिलों के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति का भरोसा दे दिया। इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, जिन्ना ने तो महाराजा को एक खाली पन्ना तक देते हुए कहा था कि वह इस पर अपनी सभी शर्तें लिख सकते हैं। भारत को ये आशंका थी कि अगर ऐसा हुआ तो जयपुर और उदयपुर भी उसके हाथ से निकल जाएंगे।

सरदार पटेल ने ऐसे किया था तैयार: इससे पहले ही के.एम. पाणिकर को इस बात की खबर मिल गई और उन्होंने सरदार पटेल से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा। पटेल ने बिना कोई देरी किए तुरंत जोधपुर से संपर्क साधा और उसे हथियार, अनाज की आपूर्ति का भरोसा दिलाया। महाराजा की अपनी प्रजा और उसके अधीनस्थ सामंतों ने कहा कि वे एक मुस्लिम देश के साथ तालमेल बिल्कुल नहीं बिठा सकते। आखिरकार सरदार पटेल की कोशिश सफल हुई और महाराजा भारत का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गए।

वायसराय के सचिव पर तान दी थी पिस्तौल: जोधपुर के महाराजा ने आखिरी समय तक अपना नाटकीय हावभाव जारी रखा। वायसराय के कार्यालय में जब उनसे विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया तो उन्होंने अपनी पिस्तौल अचानक वायसराय के सचिव पर तान दी। लेकिन कुछ ही मिनटों में उनका गुस्सा शांत हो गया और उन्होंने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए।