मई 1987। फ़िज़ा में उमस और तीखी गर्मी थी, लेकिन सियासी गलियारों में राजीव गांधी और विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) के बीच जारी ‘जंग’
की चर्चा थी। बोफोर्स सौदे में घोटाले का आरोप लगा मंत्री पद छोड़ने वाली वीपी सिंह और राजीव गांधी आमने-सामने थे। दोनों के बीच तकरार तब और बढ़ गई जब राजीव गांधी ने एक पब्लिक मीटिंग में परोक्ष रूप से सिंह की तुलना मीर जाफर और जयचंद से कर दी।

इसके बाद वीपी सिंह और राजीव गांधी आमने-सामने आ गए। चूंकि राजीव गांधी, सिंह पर पहले से ही खफा थे और उन्हें देखते ही पूछ बैठे ‘आजकल तुम्हारी बहुत जय जयकार हो रही है। क्या करने का इरादा है? जवाब में वीपी सिंह ने कहा ‘हम कांग्रेस के सच्चे कार्यकर्ता बने रहेंगे और अगर प्रधानमंत्री चाहते हैं तो सियासत से संन्यास ले लेंगे।’

पूर्व सांसद संतोष भरतिया ने अपनी हालिया किताब ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’ में इस किस्से का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि ‘वीपी सिंह की इस टिप्पणी पर राजीव गांधी की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया दी गई। उन्होंने ताना मारते हुए कहा, ‘3 महीने भी इस तरह नहीं चल पाएगा और प्रणब मुखर्जी की तरह आप भी वापस लौट आएंगे।’ दरअसल, प्रणब मुखर्जी ने मतभेद के बाद कांग्रेस छोड़ दी थी लेकिन कुछ वक्त बाद ही वापस आ गए थे।

‘मैं चैलेंज स्वीकार करता हूं’: राजीव गांधी के इस ताने पर वीपी सिंह ने भी पलटवार किया और कहा था कि अगर 3 महीने भी इस तरह चला तो मैं चला लूंगा। आपका चैलेंज स्वीकार करता हूं।’

सोनिया को बनाना चाहते थे पीएम: संतोष भरतिया ने अपनी किताब में एक और किस्से का जिक्र करते हुए लिखा है कि किस तरह वीपी सिंह ने साल 2004 में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तमाम प्रयत्न किए थे और कई क्षेत्रीय पार्टियों से मदद मांगी थी। भरतिया लिखते हैं, ‘वीपी सिंह ने मुझे बताया था कि अगर अटल बिहारी बाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बनने वाले होते तो वे शायद यह जतन नहीं करते लेकिन लालकृष्ण आडवाणी का नाम पीएम पद के लिए चर्चा में आया तब उन्होंने सोनिया गांधी की पैरवी करना मुनासिब समझा।’