साल 1947 में आजादी मिलने के बाद सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को अंदर और बाहर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। ‘गांधीयुग’ के बाद कांग्रेस पार्टी में बड़ा बदलाव आ गया था। अब पार्टी के बड़े नेता भी एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में ऐसे ही एक किस्से का जिक्र किया है, जब पटेल और नेहरू के बीच मतभेद खुलकर सामने आए थे।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

रामचंद्र गुहा लिखते हैं, कांग्रेस में गुटबंदी तेज होती जा रही थी और पार्टी की लोकप्रियता घटती जा रही थी। सबसे बड़ा मतभेद तो पार्टी के दो कद्दावर नेताओं, पंडित जवाहर लाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल में था। साल 1949 के आखिरी में ये मतभेद खुलकर सामने आया, जब देश के पहले राष्ट्रपति का चुनाव होना था। नए साल में हिंदुस्तान ब्रिटिश सम्राट की प्रमुखता वाले एक ‘डोमिनियन स्टेट’ से पूर्ण गणराज्य में तब्दील होने वाला था।

पटेल से नाराज हो गए थे नेहरू: भारत में गवर्नर-जनरल की जगह राष्ट्रपति को लेनी थी। नेहरू इस पक्ष में थे कि गवर्नर जनरल के पद पर पहले से ही आसीन सी. राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बना दिया जाए, लेकिन सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनाने के पक्ष में थे।

सी.राजगोपालाचारी शहरी पृष्ठभूमि से आते थे और उनसे नेहरू की नजदीकियां भी थीं। जबकि राजेंद्र प्रसाद कुशल राजनेता थे और उन्हें पटेल का करीबी माना जाता था। पंडित नेहरू ने गोपालाचारी को आश्वस्त कर दिया था कि वह देश के पहले राष्ट्रपति बनेंगे, लेकिन नेहरू तब नाराज़ हो गए जब पटेल ने राजाजी की जगह कांग्रेस संगठन की तरफ से राजेंद्र प्रसाद का नाम आगे करवा दिया और वो राष्ट्रपति बन भी गए। इस तरह राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति बनते ही ये साबित हो गया कि इस राजनीतिक लड़ाई की पहली बाजी सरदार पटेल ने जीत ली थी।

राष्ट्रपति बनने के बाद 26 जनवरी 1950 को राजेंद्र प्रसाद ने गणतंत्र दिवस समारोह की सलामी ली। उस दिन सशस्त्र सेनाओं के तीन हजार जवान राष्ट्रपति के सामने से सलामी देते हुए गुजरे। भारतीय सेना ने इस समारोह में इकत्तीस तोपों की सलामी दी।

राजेंद्र प्रसाद ने ही पंडित नेहरू को ‘भारत रत्न’ देने का लिया था फैसला: इस वाकये के बाद राजेंद्र प्रसाद और नेहरू के बीच रिश्ते कभी वैसे नहीं हो पाए, लेकिन दोनों के रिश्ते की तल्खियां कभी खुलकर सामने नहीं आईं। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री: देश, दशा, दिशा’ में लिखते हैं, दोनों के बीच कई मुद्दों को लेकर मतभेद था। इसके बावजूद राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति रहते हुए पंडित नेहरू को भारत रत्न देने का निर्णय किया था। 1955 में जब नेहरू को ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा हुई तो वह यूरोप के आधिकारिक दौरे पर थे।

राजेंद्र प्रसाद से जब इस फैसले को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा था, ‘यह कदम मैंने स्व-विवेक से लिया है। मैंने इसको लेकर प्रधानमंत्री से भी कोई चर्चा नहीं की। ये कहा जा सकता है कि ये फैसला अवैधानिक है, लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि इसका स्वागत भी पूरे उत्साह से किया जाएगा।’ बता दें 7 सितंबर 1955 को पंडित नेहरू को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। नेहरू के मंच पर पहुंचते ही पूरा सभागार तालियों को गड़गड़ाहट से गूंज उठा था।