भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का कार्यकाल काफी छोटा रहा। इंदिरा गांधी के विरोध से केंद्र की सत्ता में बनी जनता पार्टी की सरकार अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाई थी। सियासी गलियारों में मोरारजी देसाई को लेकर कई तरह के किस्से कहे जाते हैं। अब वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने अपनी हालिया किताब ‘अ रूड लाइफ: द मेम्योर’ में उनके पीएमओ छोड़ने से पहले का एक किस्सा साझा किया है।

वीर सांघवी ने दावा किया है, ‘मैं उन दिनों बॉम्बे मैग्जीन के लिए काम करता था। मैं मोरारजी देसाई से दो बार मिला था। उन्होंने कई अजीब कल्पनाओं के साथ मुझे दिल्ली में चल रही अपने बारे में कई कैंडिड स्टोरीज़ के बारे में बताया। लेकिन एक बार अगर आपने उन्हें ऑन रिकॉर्ड कुछ भी कहने के लिए बोला तो वह बिल्कुल चुप हो जाते थे। उनके चेहरे के हाव-भाव भी बिल्कुल संन्यासी की तरह हो जाते थे।’

उन्होंने लिखा, ‘हममें से किसी को भी इस बात का एहसास नहीं था कि इससे पहले कि वह पीएमओ से बाहर निकलते उस संन्यासी ने हर उस गुप्त फाइल को इकट्ठा कर लिया था जिसे वह पीएमओ में अपने हाथों से हासिल कर सकता था। उनके पास गोपनीय संचार, सरकारी फाइलें और गुप्त पत्रों का खजाना था, सभी सुरक्षित रूप से रखे गए थे, शायद उनमें एयर इंडिया अटैची मामलों के दस्तावेज भी थे।’

बुक लिखवाना चाहते थे मोरारजी देसाई: मोरारजी देसाई इन फाइलों के सहारे एक बुक लिखना चाहते थे। इसी क्रम में उन्होंने 1982 में अरुण गांधी को बुलवाया और उन्हें वो सभी दस्तावेज़ दिखाए। सभी दस्तावेज वहीं थे। मोरारजी ने अरुण को बताया कि ये फाइलें कितनी मायने रखती हैं। यहां तक कि मोरारजी ने किताब की थीम भी तैयार कर रखी थी। वह इसमें खुद को गांधी के विचारों पर चलने वाले एक नेता के रूप में दर्शाना चाहते थे जो प्रधानमंत्री के रूप में अपनी ड्यूटी करने दिल्ली गया था।

मोरारजी देसाई चाहते थे कि किताब में दर्शाया जाए कि चरण सिंह और इंदिरा गांधी जैसे नेताओं ने उनकी इस इच्छा को विफल कर दिया। एक कहानी के रूप में ये किताब एक बहुत बेकार थी, जो पढ़ने में बिल्कुल अमर चित्र कथ जैसी लग रही थी। वह सच्चाई से परे थी। लेकिन अरुण बहुत चालाक थे और उन्हें ये पता था कि ये दस्तावेज अभी तक किसी पत्रकार के हाथ नहीं लगे हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत इसके लिए हां कर दी।

तय कर लिया था बुक का टाइटल: इसके बाद, एक बार फिर पुराना मोरारजी देखने को मिला। उन्होंने ऑन-रिकॉर्ड कुछ भी देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इसमें किसी भी दस्तावेज का जिक्र नहीं किया जाए। अरुण को मोरारजी देसाई की कहानी बिल्कुल ऐसे कहनी थी जिसके बाद कोई सबूत नहीं था, लेकिन उसे पता सबकुछ था। अरुण बेहत नेक व्यक्ति थे इसलिए उन्होंने ऐसा करने के लिए भी हां कर दी। यहां तक कि उन्होंने मोरारजी देसाई के लिए बुक का टाइटल भी चुन लिया। बुका का टाइटल रखा गया, ‘Morarji Betrayed’

अरुण रोज़ाना उस दस्तावेजों के साथ ऑफिस आते थे और सभी मैंने भी देखे थे। कई दस्तावेज तो इसमें सनसनीखेज़ भी थे। इसमें एक राम जेठमलानी का मोरारजी देसाई को पत्र भी था, जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘चरण सिंह ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है।’ यह दिलचस्प था क्योंकि इसने सरकार के भीतर की लड़ाई में एक अंतर्दृष्टि प्रदान की।