हर कोई चाहता है कि उसके बच्चे को अच्छी परवरिश हो। इसके लिए हम सभी हर तरह की कोशिशें करते हैं। आपका पेरेंटिंग स्टाइल सिर्फ आपके बच्चे ही नहीं भविष्य में बच्चे के बच्चे की परवरिश में भी बड़ा योगदान निभाएगी, क्योंकि आपका बच्चा आज जो आप से सीखेगा भविष्य में अपने बच्चों पर भी वही लागू करेगा। आप किस तरह से बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, उनके किन सवालों का क्या जवाब दे रहे हैं और उनकी बदमाशियों और शरारत पर किस तरह से रिएक्ट कर रहे हैं, यह बच्चों के कैरेक्टर को सही ढंग से बनाने में बहुत बड़ा योगदान निभाता है।
आपका बच्चा हद से ज्यादा जिद्दी हो गया है और बात-बात में अपनी बात मनवाने की कोशिश करता है। इसके अलावा क्या आपका बच्चा आपकी एक भी बात नहीं सुनता, चिड़चिड़ापन और गुस्सा उसके नाक पर बैठा रहता है? यदि ऐसा तो हो सकता है उसके देखभाल में आपकी तरफ से कोई कमी हो। बच्चों की परवरिश, उनकी देखभाल, उन्हें अच्छी बातें सिखाना, उन्हें अच्छी-अच्छी बातें सिखाना-समझाना कोई आसान काम नहीं है। पेरेंटिंग एक कठिन जॉब है। आजकल कई तरह के पेरेंटिंग स्टाइल के बारे में बात होती है। आपका पेरेंटिंग स्टाइल बच्चे के वर्तमान और भविष्य को बहुत हद तक निर्धारित करता है। हर मां-बाप का अपने बच्चे को डील करने का एक अलग तरीका होता है। आइये जानते हैं कुछ पेरेंटिंग स्टाइल के बारे में-
परमिसिव पेरेंटिंग: परमिसिव पेरेंटिंग का मतलब है जहां पेरेंट्स अपने बच्चों को अपने निर्णय लेने देते हैं और बच्चों की जिंदगी में ज्यादा दखल नहीं देते हैं। लेकिन इस वजह से वो बच्चों को एक इमोशनल सपोर्ट देने में असफल हो जाते हैं। परमिसिव पेरेंट्स अक्सर अभिभावक ना होकर एक दोस्त की भूमिका निभाने की कोशिश करते हैं। वह अपने बच्चों को उनकी समस्याओं के बारे में बात करने के लिए उत्साहित तो करते हैं लेकिन अगर बच्चा कोई बुरा निर्णय ले रहा है तो यह फैसला उसी पर छोड़ देते हैं।
हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग: इस तरह के पेरेंट्स को ओवरप्रोटेक्टिव कह सकते हैं। इस स्टाइल के पेरेंट्स अपने बच्चे की जिंदगी में इस कदर हावी रहते हैं, शामिल होते हैं कि बच्चे भी परेशान हो जाते हैं। इस प्रकार के माता-पिता हर छोटी-छोटी चीजों में बच्चों की हेल्प करते हैं, उनके हर काम में वे परफेक्शन देखना पसंद करते हैं। ऐसे बच्चे पूरी तरह से अपने पेरेंट्स पर निर्भर रहते हैं, जो खुद बच्चों के विकास, सोच-समझ को विकसित करने, कोई भी फैसला खुद से लेने में बाधक बन सकती है।
अक्सर कुछ माता-पिता अपने बच्चों के प्रति इतने सख्त हो जाते हैं, जिसके कारण बच्चे उनसे दूर रहने लगते हैं। ऐसा व्यहार करने से पेरेंट्स और बच्चों के बीच का बॉन्ड, जुड़ाव भी कम हो सकता है। इसके अलावा यदि आप बच्चे को हद से ज्यादा बात-बात में डांटना, रोक-टोक और दूसरे बच्चे से तुलना करते हैं तो यह बातें बच्चों को अंदर ही अंदर गुस्सैल, कमजोर बना देता है। यदि आप चाहते हैं आपका बच्चा आपकी बातों को सुने और मानें, आपको इज्जत दे यह सब करना छोड़ दें।