राजमाता विजयाराजे सिंधिया शुरू से ही खुले विचारों की थीं। बीजेपी के संस्थापकों में से एक, राजमाता नेपाल के राजपरिवार से ताल्लुक रखती थीं। परिवार ने उन्हें पढ़ाई के लिए लखनऊ के आईटी कॉलेज भेजा था। शादी से पहले लेखा दिव्येश्वरी देवी के नाम से जानी जाने वालीं विजयाराजे की यहां एक सिविल सर्वेंट से मुलाकात हुई थी।
बृज बिहारी सिंह नाम के वो अफसर विजयाराजे से शादी करना चाहते थे। हालांकि बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। इसी दौरान लेखा का दिल एक आर्मी ऑफिसर पर आ गया था। दोनों एक दूसरे को काफी पसंद करते थे और शादी की तारीख भी तय हो गई थी। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रिग’ में इसका विस्तार से जिक्र किया है।
किदवई लिखते हैं, लेखा का अगला प्रेमी एक आर्मी ऑफिसर था। लेफ्टिनेंट दुष्यंत चौहान सागर में तैनात थे। दोनों परिवारों ने शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। वर-वधु की जन्म-कुंडली भी एक-दूसरे के घर भेज दी गई थी और शादी की तारीख 8 मई 1940 तय की गई थी।
लेकिन 21 साल की लेखा की किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। अचानक द्वितीय विश्वयुद्ध की घोषणा हो गई और लेफ्टिनेंट चौहान को ब्रिटेन की तरफ से लड़ने यूरोप भेज दिया गया था। ऐसे में शादी की तारीख आगे बढ़ाई जा सकती थी, लेकिन दूल्हे ने शादी के लिए मना कर दिया था।
त्रिपुरा के राज परिवार में होने वाली थी विजयाराजे की शादी: परिवार ने लेखा के लिए एक बार फिर लड़के की तलाश शुरू की। बात त्रिपुरा के राज परिवार तक पहुंची। इस परिवार का इतिहास भी गौरवशाली था। अंग्रेजों ने भी इस परिवार को महाराजा की उपाधि दे रखी थी। राजकुमार दुर्जय किशोर देव बर्मन माणिक्य राजवंश के 180वें शासक थे। कलकत्ता में दोनों परिवार की मुलाकात हुई।
राज परिवारों में माना जाता था कि शादी तय होने से पहले कोई किसी के घर नहीं जाएगा। इसी वजह से मुलाकात बाहर हुई। लेखा का परिवार उनकी शादी को लेकर बहुत सतर्क था। इसलिए उन्होंने दूल्हे के बारे में जानकारी एकत्रित करना शुरू किया। हालांकि किन्हीं कारणों से राजा से लेखा की शादी नहीं हो पाई थी।
ताज होटल में हुई जीवाजी राव से मुलाकात: इसके बाद ग्वालियर सिंधिया राजघराने के महाराज जीवाजी राव के पास लेखा दिव्येश्वरी का रिश्ता पहुंचा। दोनों परिवारों की मुलाकात मुंबई के ताज होटल में हुई। यहां जीवाजी राव ने लेखा को महारानी कहकर बुलाया और उन्हें पहली ही नज़र में पसंद कर लिया। साथ ही जीवाजी राव ने लेखा के परिवार को समुंदर महल में आने का न्योता दिया। यहां लेखा का किसी महारानी की तरह स्वागत किया गया।
कुछ दिनों बाद जीवाजी राव ने लेखा के मौसा चंदन सिंह के हाथ नेपाल हाउस में शादी का प्रस्ताव भिजवा दिया। शुरुआत में सिंधिया और मराठा सरदारों ने इस शादी का विरोध किया था। हालांकि बाद में विजयाराजे सिंधिया ने पूरे परिवार का दिल जीत लिया।