बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के राजघराने से आते हैं। मध्य प्रदेश में सिंधिया परिवार की पकड़ भी अच्छी-खासी है। ज्योतिरादित्य से पहले उनका दादी विजयराजे सिंधिया और पिता माधव राव सिंधिया भी दिग्गज नेताओं में शामिल रहे हैं। माधव राव सिंधिया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली थी। उन दिनों ज्योतिरादित्य स्कूल में पढ़ाई किया करते थे।
दिल्ली वापस आ रही थीं गाड़ियां: ज्योतिरादित्य ने ‘सिर्फ सच’ से बातचीत में बताया, ‘मैं दून स्कूल से पढ़ा हुआ हूं। मिड-टर्म ब्रेक होते थे। उस बार हम लोग सरिस्का जा रहे थे। पिता जी और अम्मा प्लेन से वापस गए थे। हमारी गाड़ियां दिल्ली वापस खाली जा रही थीं और हम लोग बस से जा रहे थे। इत्तेफाक़ की बात हुई कि मैंने रास्ते में देखा कि हमारी 3-4 गाड़ियां खाली जा रही हैं। मैंने बस में ट्यूटर से पूछा- आपको अगर ऐतराज़ न हो तो मैं 4-5 दोस्तों को साथ ले जाऊं।’
दोस्तों के साथ गाड़ियों में बैठकर पहुंचे दिल्ली: ज्योतिरादित्य ने आगे बताया, ‘मेरे दिमाग में था कि कार से दिल्ली पहुंच जाएंगे। फिल्म देखेंगे और मजे में खाना वगैरह खाएंगे फिर सरिस्का पहुंच जाएंगे एसी गाड़ी से। दिल्ली के तिलक मार्ग में हम पहुंचे और खाना वगैरह आराम से खाया। अचानक फोन आया रेल मंत्रालय से। पिता जी फोन पर थे और उन्होंने मुझे कहा कि तुम यहां क्या कर रहे हो? मैंने कहा कि कुछ नहीं गाड़ियां निकल रही थीं तो मैं उसमें बैठकर आ गया।’
बस से सरिस्का पहुंचने का दिया था आदेश: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, ‘पिता जी ने कहा कि मां को फोन दो। मां को पिता जी ने कहा कि तुरंत जिस कार से ये यहां आया है उसी में इसे बैठाओ। अपने दोस्तों के साथ के साथ ये ISBT (बस अड्डा) से बस में बैठेगा और बस से सरिस्का पहुंचेगा। तो ऐसे थे हमारे पिताजी। भले ही हम कितने राजघराने के हों, लेकिन वो हमेशा यही चाहते थे कि हमें जमीन से जुड़कर ही रहना चाहिए और यहां के लोगों के बारे में ही सोचना चाहिए। हम लोगों ने ऐसा ही किया भी।’