कांग्रेस के युवा चेहरे के रूप में उभरे जितिन प्रसाद ने उत्तर प्रदेश चुनाव से ऐन पहले बीजेपी का हाथ थाम लिया है। जितिन के जाने से कांग्रेस संगठन को एक बड़ा धक्का लगा है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश में पार्टी का एक लोकप्रिय युवा चेहरा थे और अगले साल सूबे में विधानसभा चुनाव भी होने हैं।
जितिन प्रसाद ने सोनिया गांधी को बाकायदा पत्र लिखकर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। उनके इस कदम का कई कांग्रेस नेताओं ने विरोध किया था जिसके बाद से उनकी कांग्रेस से कटने की बातें सामने आ रही थी।
पिता ने सोनिया गांधी को दे दी थी चुनौती: जितिन प्रसाद के लिए ये कहना भी गलत नहीं होगा कि उन्हें बगावत अपने पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जितेंद्र प्रसाद से विरासत में मिली है। जितेंद्र प्रसाद शुरू से गांधी परिवार के चहेते नेताओं में रहे थे और वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के सलाहकार भी रहे थे।
जबकि दूसरी तरफ जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपने का खुलकर विरोध किया था। जितेंद्र प्रसाद के विरोध की एक मुख्य वजह ये भी थी कि वह सोनिया गांधी से राजनीति में बहुत पुराने थे और उम्र में बहुत बड़े भी।
जितेंद्र प्रसाद ने अपने विरोध की आवाज को उठाया तो कई नेताओं ने चुनिंदा नेताओं ने उनका समर्थन भी किया जबकि एक बड़ा धड़ा उनके विरोध में खड़ा था। कांग्रेस के दिग्गज नेता जितेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में सोनिया गांधी को चुनौती दी। हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल 2001 में उनका निधन हो गया था। पिता की मौत के बाद जितिन प्रसाद ने राजनीति में कदम रखा और साल 2004 का लोकसभा चुनाव अपने संसदीय क्षेत्र शाहजहांपुर से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा।
मनमोहन सिंह की सरकार में बने कैबिनेट मंत्री: 2004 के लोकसभा चुनाव में जितिन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और यहां से उनका चुनावी सफर भी शुरू हो गया। देखते ही देखते जितिन की गिनती कांग्रेस के लोकप्रिय युवा चेहरों में होने लगी। साल 2008 में उन्हें पीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया। यूं तो जितिन राजनीति में नए थे, लेकिन उन्होंने हर मोड़ पर ये साबित किया कि वह अपने पिता से अलग नहीं है। समय आने पर उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया और अब बीजेपी जॉइन कर ली है।

