25 जून 1975 की आधी रात इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी। इसके बाद सियासी गलियारों में उथल-पुथल मच गई। विपक्षी नेताओं को इसका अंदेशा पहले से ही था। जॉर्ज फर्नांडिस, नानाजी देशमुख और सुब्रमण्यम स्वामी जैसे कुछ नेता तो अंडर ग्राउंड हो गए, लेकिन जयप्रकाश नारायण (जेपी), आडवाणी और वाजपेयी जैसे तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। उधर, आम लोगों को पता ही नहीं था कि इमरजेंसी का मतलब क्या होता है। सड़कें सूनी हो गईं, पुलिस की गश्त बढ़ गई।
फोन उठाने से भी डरने लगे जगजीवन राम: इमरजेंसी की घोषणा के बाद तमाम विपक्षी नेता घबराए हुए थे। उनके घर पर पुलिस का पहरा बढ़ गया था। गुप्तचर एजेंसियों के अधिकारी नजर रख रहे थे। इमरजेंसी लगने के अगले दिन यानी 26 जून 1975 की सुबह वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर जब जगजीवन राम से मिलने उनके घर पहुंचे तो वे बेहद घबराए हुए नजर आ रहे थे। यहां तक कि फोन उठाने से भी घबरा रहे थे और डर के नाते फोन का रिसीवर एक तरफ रख दिया था। उन्हें लग रहा था कि उनका फोन टेप किया जा रहा है।
बुआ से हो गई इंदिरा गांधी की बहस: विपक्षी नेता तो इमरजेंसी और इंदिरा गांधी सरकार की आलोचना कर ही रहे थे। जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी आलोचना करने वालों में शामिल थीं। उन्होंने इंदिरा गांधी से मिलकर अपनी नाराजगी जाहिर की। इस दौरान दोनों के बीच कहासुनी भी हो गई थी। बाद में जनता पार्टी के नेताओं ने विजयलक्ष्मी पंडित से अपने पक्ष में प्रचार करने को कहा लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुई थीं।
‘तुम्हारा नौकर नहीं हूं’:इमरजेंसी की घोषणाके बाद विपक्षी नेता तो निशाने पर थे ही। पत्रकार भी निशाना थे। खासकर संजय गांधी ने कुछ चुनिंदा पत्रकारों को सबक सिखाने की ठान ली थी। उन्होंने तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री इंदर कुमार गुजराल को फोन करके प्रेस को दुरुस्त करने का हुक्म दिया। उनके लहजे और आदेश पर गुजराल गुस्सा हो गए और दो टूक कह दिया कि वह उनकी मां के सहकर्मी हैं ना कि संजय गांधी के घरेलू नौकर। इसके बाद 28 जून को गुजरात से सूचना प्रसारण मंत्रालय का प्रभार ले लिया गया और विद्याचरण शुक्ल को सौंप दिया गया।
‘शेर पिंजरे में आ गया है’: इमरजेंसी की जिन लोगों ने खुलकर आलोचना की थी, उनमें वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर भी शामिल थे। उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की। नैयर को अपनी गिरफ्तारी का अंदेशा भी था। एक सुबह पुलिस वाले उनके घर आ धमके। नैयर ने कहा कि आप घर की तलाशी ले सकते हैं, लेकिन पुलिस वालों ने कहा कि वे तलाशी लेने नहीं बल्कि गिरफ्तार करने आए हैं। नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखा है कि मेरी गिरफ्तारी के बाद थानेदार ने वायरलेस सेट पर अपने सुपरिंटेंडेंट को मेरी गिरफ्तारी की खबर देते हुए कहा ‘शेर पिंजरे में आ गया है’।
जीप को धक्का देकर गए जेल, टैक्सी से लौटे: कुलदीप नैयर को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया और जीप में बैठा कर ले जाने लगे तो जीप स्टार्ट ही नहीं हुई। तमाम प्रयास के बाद जीप को धक्का मारा गया। इसमें कुलदीप नैयर भी शामिल थे। इस तरह वे खुद पुलिस की जीप को धक्का मारकर जेल पहुंचे।
वहां उनकी मुलाकात असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बरार से हुई। बरार ने उन्हें देखते ही कहा मैंने पिछले हफ्ते ही आपकी किताब पढ़ी है। मैं आपसे मिलना चाहता था लेकिन सोचा नहीं था कि इस तरह मुलाकात होगी। बता दें कि कुलदीप नैयर की रिहाई के बाद बाकायदा टैक्सी से उनको घर भिजवाया गया था।