महिला दिवस बहुत महत्व है और यह आज के समय में एक प्रथा बन गई है। यह समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार और देखभाल का उत्सव है। यह खुशी की बात है कि आजकल स्कूलों और कॉलेजों में महिला दिवस मनाया जाता है ताकि महिलाओं के लिए सम्मान और देखभाल उनके बचपन के दिनों से ही युवा पीढ़ी के मन में पैदा हो। महिलाओं को सशक्त बनाना एक बड़ी जिम्मेदारी है। यह जेंडर इक्वलिटी के लिए आवश्यक है। हर साल 8 मार्च को महिला दिवस देशभर में मनाया जाता है। इस खास मौके पर आप यहां से आसान और ट्रेंडिंग स्पीच तैयार कर सकते हैं-
स्पीच 1: आज की महिला निर्भर नहीं हैं। वह हर मामले में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं और पुरुषों के बराबर सब कुछ करने में सक्षम भी हैं। हमें महिलाओं का सम्मान जेंडर के कारण नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान के लिए करना होगा। हमें यह स्वीकार करना होगा कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरुष और महिला दोनों समान रूप से योगदान करते हैं। यह जीवन को लाने वाली महिला है। हर महिला विशेष होती है, चाहे वह घर पर हो या ऑफिस में।
वह अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला रही हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों की परवरिश और घर बनाने में एक प्रमुख भूमिका भी निभाती है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस महिला की सराहना करें और उसका सम्मान करें जो अपने जीवन में सफलता हासिल कर रही हैं और अन्य महिलाओं और अपने आस-पास के लोगों के जीवन में सफलता ला रही हैं।
Highlights
महिलाओं के बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ बोलने से पहले जरूरी है कि उनके बारे में अच्छी सोच रखें। जब अच्छी भावना और अच्छी सोच के साथ पब्लिक-प्लेस पर बोलेंगे तो महिलाओंं को भी अच्छा लगेगा और आपको भी सम्मान मिलेगा। महिलाओं को समाज में ऊंचा दर्जा दिया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का जन्म 8 मार्च, 1908 को हुआ था, जब 15,000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर अपने अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया, कम घंटे, बेहतर वेतन और मतदान का अधिकार उनकी मांगे थी। पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम 1911 में आयोजित किया गया था, उसके बाद ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में आयोजित किया गया था।
महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं और खुद ही अपना मुकाम तय कर रही हैं। धीरे- धीरे ही सही लेकिन महिलाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ रही है। और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए ही विमेंस डे मनाया जाता है। महिला दिवस राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर महिलाओं के समान अधिकारों को देखते हुए विश्व भर में मनाया जाता है। हर साल 8 मार्च को मनाए जाने वाले इस दिन को पहली बार सन् 1909 में मनाया गया था।महिलाओं को समर्पित इस दिन पर कई जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिस में महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इस दिन को मनाने के पीछे सबसे बड़ी वजह हैं कि महिलाओं को शिक्षा में बढ़ावा, करियर के क्षेत्र में कई अवसर और पुरुषों के जैसे ही समान अधिकार मिल सकें।
किसी ज़माने में अबला समझी जाने वाली नारी को मात्र भोग एवं संतान उत्पत्ति का जरिया समझा जाता था। जिन औरतों को घरेलू कार्यों में समेट दिया गया था, वह अपनी इस चारदीवारी को तोड़कर बाहर निकली है और अपना दायित्व स्फूर्ति से निभाते हुए सबको हैरान कर दिया है। इक्कीसवीं सदी नारी के जीवन में सुखद संभावनाएँ लेकर आई है। नारी अपनी शक्ति को पहचानने लगी है वह अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हुई है। लेकिन यहां हम इस कटु सत्य से मुंह नहीं मोड़ सकते कि महिलाओं को आज भी पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।
महिला दिवस की सफलता की पहली शर्त जहां मूलत: महिलाओं के सर्वोतोमुखी विकास में निहित है, वही दूसरी शर्त के बतौर हमें यह कहने में भी लेशमात्र हिचक नहीं है कि पुरुष मानसिकता में आमूलचूक बदलाव आए और वह इस वास्तविकता को जाने कि घर के कामकाज के साथ जब महिलाये अन्य महत्वपूर्ण और चुनौती भरे क्षेत्रों में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने का जज्बा रखती हैं।
वर्तमान स्थिति में नारी ने जो साहस का परिचय दिया है, वह आश्चयर्यजनक है। आज नारी की भागीदारी के बिना कोई भी काम पूर्ण नहीं माना जा रहा है। समाज के हर क्षेत्र में उसका परोक्ष – अपरोक्ष रूप से प्रवेश हो चुका है।
आज तो कई ऐसे प्रतिष्ठान एवं संस्थाएं हैं, जिन्हें केवल नारी संचालित करती है। हालांकि यहां तक का सफर तय करने के लिए महिलाओं को काफी मुश्किलों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ा है और महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए अभी आगे मीलों लम्बा सफर तय करना है, जो दुर्गम एवं मुश्किल तो है लेकिन महिलाओं ने ही ये साबित किया है कि वो हर कार्य को करने में सक्षम हैं।
राष्ट्र की प्रगति व सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उतनी ही अहम् है जितनी कि पुरुषों की और इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब-जब नारी ने आगे बढ़कर अपनी बात सही तरीके से रखी है, समाज और राष्ट्र ने उसे पूरा सम्मान दिया है और आज की नारी भी अपने भीतर की शक्ति को सही दिशा निर्देश दे रही है। यही कारण है कि वर्तमान में महिलाओं की प्रस्थिति एवं उनके अधिकारों में वृद्धि स्पष्ट देखी जा सकती है। आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में बहुत भारी बदलाव आया है। अधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आका जाता। यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई है। जीवन के हर क्षेत्र में वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़ी हैं और आत्मबल, आत्मविश्वास एवं स्वावलंबन से अपनी सभी जिम्मेदारी निभाती है। वर्तमान में महिला को अबला नारी मानना गलत है। आज की नारी पढ लिखकर स्वतंत्र है अपने अधिकारों के प्रति सजग भी है। आज की नारी स्वयं अपना निर्णय लेती है।
अर्थात जहां नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते है। वैसे तो महिलाओं को प्रेरित करने के लिए किसी ख़ास दिन की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए लेकिन देश व दुनिया में जो परम्परा रही है उसमें महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर हम गहराई से झांककर देखें तो महिला हो या पुरुष दोनों में सबकुछ करने की अपार क्षमता छिपी हुई है और दोनों ही आसमान छू सकते है तो आखिर क्यों क्षमता रहित समझकर नारी को सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता से वंचित होना पड़ता है।
इतिहास गवाह है कि नारी ने हमेशा से परिवार संचालन का उत्तरदायित्व सम्भालते हुए समाज निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है । वहीं भारतीय संस्कृति में स्त्री का दर्जा पुरुष की अपेक्षा कहीं अधिक सम्माननीय माना गया है । हमारे आदि-ग्रंथों में भी नारियों की भूमिका को अहम माना गया है।
समाज के विकास में महिलाओं की सच्ची महत्ता और अधिकार के बारे में जनजागरूकता लाने हेतु ही हर साल महिला दिवस जैसे कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाते है। इस दिन पर महिलाओं की सुरक्षा, विकास एवं सशक्तिकरण के लिए सर्वोच्च प्राथमिकताएं तय किए जाते हैं और विश्वभर में लागू किए जाते हैं। विमेंस डे इसलिए और भी ज्यादा खास हो जाता है क्योंकि इस दिन के सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों के जरिए समाज के विकास के प्रत्येक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय भूमिका निभाने वाली महिलाओं को उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है उन्हें सराहा जाता है। महिला दिवस पर इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन से महिलाओं के उत्थान की दिशा में तेजी से कार्य करने में बड़ी मदद मिलती है।
आज की महिलाएं हर मामले में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। हमें महिलाओं का सम्मान जेंडर के कारण नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान के लिए करना होगा। हमें यह स्वीकार करना होगा कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरुष और महिला दोनों समान रूप से योगदान करते हैं। नव जीवन को धरती पर लाने वाली महिला है। हर महिला विशेष होती है, चाहे वह घर पर हो या ऑफिस में।
वह अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला रही हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों की परवरिश और घर बनाने में एक प्रमुख भूमिका भी निभाती है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस महिला की सराहना करें और उसका सम्मान करें जो अपने जीवन में सफलता हासिल कर रही हैं और अन्य महिलाओं और अपने आस-पास के लोगों के जीवन में सफलता ला रही हैं।
भारत में मां दुर्गा और काली की पूजा होती है इसलिए हमारे देश में नारी को देवी भी कहा गया है। हालांकि, आज भी देश का एक बड़ा तबका ऐसा है जहां रूढ़िवादी सोच ने कब्जा जमाया हुआ है। ऐसे लोगों के लिए बेटी का जन्म खुशी नहीं बल्कि शर्म की बात होती है। पिछले कुछ समय से महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है वो पढ़ रही हैं और आगे बढ़ रही हैं। लेकिन फिर भी ये लोग सच्चाई से मुंह फेर लेते हैं और लड़कियों को केवल चूल्हा-चौका तक ही सीमित रखते हैं। ऐसे में हमें हर संभव कोशिश करना चाहिए इन लोगों को जागरुक करने के लिए क्योंकि जहां नारी का सम्मान नहीं वहां सुख नहीं।
आजादी के 70 साल बाद भी देश में एक बड़ी संख्या में लड़कियां और बच्चियां अपनी शिक्षा को पूरा नहीं कर पाती हैं और गरीबी या पारिवारिक समस्या की वजह से छोटी उम्र में ही स्कूल छोड़ने को मजबूर होती है। अशिक्षित होने की वजह अधिकांश महिलाएं अपने जीवन स्तर में सुधार करने में खुद को असमर्थ महसूस करती हैं। वैसे तो सरकारों ने महिला शिक्षा और छोटी बच्चियों की पढ़ाई पूरी करवाने के लिए कई सारी योजनाओं को शुरू किया है। लेकिन फिर भी अभी भी ये प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही प्रतीत होते हैं।
मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो ना संसाधनों की कमी खलती है और ना ही रुकावटें आड़े आती हैं। जरूरत सिर्फ अपने आत्मबल को पहचानने की है, अपने आसमान की ओर कदम बढ़ाने की है, जिससे हिम्मत के पंख फैलाकर उड़ान भरी जा सके। हाल ही में भारतीय वायु सेना की फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी ने ऐसा ही कर दिखाया है। एक सामान्य मध्य वर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली इस बेटी ने मिग-21 फाइटर प्लेन उड़ाकर इतिहास रचा है। पिछले दिनों विश्व कप जिमनास्टिक्स प्रतियोगिता में अरुणा बी. रेड्डी व्यक्तिगत पदक जीतने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट बनीं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत नौकरी में काम का समय कम करने, बेहतर वेतन देने, शिक्षा और वोट का अधिकार व महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों को रोकने के लिए की गई | उस समय बहुत सारे देश ऐसे थे जहां महिलाओं को कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं था | तब संयुक्त राष्ट्र संघ ने महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियां, कार्यक्रम और मापदण्ड जैसे शिक्षा, वोट देने का अधिकार और मौलिक अधिकार इत्यादि नियम लागू किये।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत के मुख्य पहलू – अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक मज़दूर आंदोलन से उपजा | न्यूयॉर्क में साल 1908 में 15 हज़ार औरतों ने अपने मौलिक अधिकारों के लिए मोर्चा निकाला और नौकरी में काम का समय कम करने, बेहतर वेतन देने की मांग की | अगस्त 1910 में ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में एक वार्षिक महिला दिवस की स्थापना का प्रस्ताव रखा 19 मार्च, 1911 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस।
विमेंस डे को पहली बार ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में दस लाख से अधिक लोगों द्वारा चिह्नित किया गया | वियेना में महिलाओ द्वारा रोजगार में भेदभाव के खिलाफ प्रदर्शन कर मतदान की मांग की और पेरिस ट्यूनी के शहीदों को सम्मानित करने वाले बैनर लगाए | 8 मार्च 1914 को जर्मनी में महिलाओ को मतदान का अधिकार दिया गया | सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर 28 फ़रवरी 1909 को मनाया गया था | और 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय मानक दिया गया |
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च को मनाया जाता है | यह दिन अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही महिलाओं का सम्मान करने और उनकी उपलब्धियों का उत्सव मनाने का दिन है | यह दिवस सबसे पहले अमेरिका में 28 फरवरी 1909 में मनाया गया | फिर इस दिवस को फरवरी के अंतिम रविवार को मनाने मंजूरी दी गई | 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय मानक दिया गया | इस दिवस की महत्ता तब और भी बढ़ी जब 1917 में फरवरी के आखिरी रविवार को रूस में महिलाओं ने Bead And Peace के लिए एक आन्दोलन शुरू किया | तब रूस में जुलियन कैलेण्डर चलता था | जिसके मुताबिक़ फरवरी के आखिरी रविवार को 23 तारीख थी जबकि बाकी दुनिया में उस समय भी ग्रेगेरियन कैलेंडर चलता था और उसके मुताबिक़ रूस की तेईस फरवरी बाकी दुनिया की आठ मार्च थी।
संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किया जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है। बीते कुछ वर्षों में महिलाओं ने सेना, प्रशासन, राजनीति जैसे हर क्षेत्र में अपना परचम लहराते हुए महिला सशक्तिकरण के संदेश को साकार किया है, ऐसे में लोगों के हर तबके को बेहतर समाज निर्माण में महिलाओं की भूमिका समझनी चाहिए।
आज की नारी जागृत एवं सक्रिय हो चुकी है | वह अपनी शक्तियों को पहचानने लगी है जिससे आधुनिक नारी का वर्चस्व बढ़ा है | व्यापार और व्यवसाय जैसे पुरुष एकाधिकार के क्षेत्र में जिस प्रकार उसने कदम रखा है और जिस सूझ – बूझ एवं कुशलता का परिचय दिया है, वह अद्भुत है | बाजार में नारियों की भागीदारी बढ़ती जा रही है | तकनीकी एवं इंजीनियरिंग जैसे पेचीदा विषयों में उसका दखल देखते ही बनता है | वर्तमान स्थिति में नारी ने जो साहस का परिचय दिया है, वह आश्चयर्यजनक है | आज नारी की भागीदारी के बिना कोई भी काम पूर्ण नहीं माना जा रहा है | समाज के हर क्षेत्र में उसका परोक्ष – अपरोक्ष रूप से प्रवेश हो चुका है। हालांकि, अब भी महिलाओं को पूरी तरह से समानता प्राप्त करने में मीलों का सफर तय करना है।
ट्रिविट्रॉन हेल्थकेयर की एकजिक्यूटिव डायरेक्टर और ग्रूप सीपीओ चंद्रा गंजू के अनुसार आज हमें शिक्षा में, भर्ती में, काम के माहौल में और नौकरी की जिम्मेदारियों में लैंगिक समानता प्रदान करने की आवश्यकता है और साथ ही कंपनियों को विविधता अपनाते हुए उन प्रणालियों और प्रक्रियाओं को ध्यान में रखना चाहिए जिससे आस पास भेदभावपूर्ण प्रथा समाप्त हो सके और एक समानता का वातावरण बने, जिससे महिलाओं को समान अवसर मिलें। आज महिलाओं को किसी भी प्रकार की विशेष सुविधाओं की आवश्यकता नहीं है; बल्कि उन्हें केवल प्रदर्शन करने के लिए एक मंच चाहिए ठीक उसी तरह जिस तरह चित्र में रंग भरने के लिए एक कैनवास की आवश्यकता होती है।
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि "महिला शिक्षा और सशक्तीकरण दूसरों के हाथों में नहीं है, यह अधिकार महिलाओं में स्वाभाविक रूप से मौजूद हैं"। इस प्रकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सबसे महत्वपूर्ण कारक उनके सपनों को आगे बढ़ाने की उनकी इच्छा है, चाहे जो भी हो।
लेखिका तसलीमा नसरीन लिखती हैं कि – “वास्तव में स्त्रियाँ जन्म से अबला नहीं होती, उन्हें अबला बनाया जाता है |” वो आगे कहती हैं कि जन्म के समय एक ‘स्त्री शिशु’ की जीवनी शक्ति का एक ‘पुरुष शिशु’ की अपेक्षा अधिक प्रबल होती है, लेकिन समाज अपनी परम्पराओं और रीति – रिवाजों एवं जीवन मूल्यों के द्वारा महिला को “सबला” से “अबला” बनाता है।
ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हमें महिलाओं का सशक्तिकरण करने के लिए उन्हें एहसास दिलाना होगा कि उनमें अपार शक्ति है, उनको अपनी आंतरिक शक्ति को जगाना होगा | क्योंकि जिस प्रकार एक पक्षी के लिए केवल एक पंख के सहारे उड़ना संभव नहीं है, वैसे ही किसी राष्ट्र की प्रगति केवल पुरुषों के सहारे नहीं हो सकता है।
महिलाएं समाज के विकास एवं तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनके बिना विकसित तथा समृद्ध समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ब्रिघम यंग के द्वारा एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘अगर आप एक आदमी को शिक्षित कर रहे हैं तो आप सिर्फ एक आदमी को शिक्षित कर रहे हैं पर अगर आप एक महिला को शिक्षित कर रहे हैं तो आप आने वाली पूरी पीढ़ी को शिक्षित कर रहे हैं’।
समाज के विकास के लिए यह बेहद जरुरी है कि लड़कियों की शिक्षा में किसी तरह की कमी न आने दी जाए क्योंकि उन्हें ही आने वाले समय में लड़कों के साथ समाज को एक नई दिशा देनी है। ब्रिघम यंग की बात को अगर सच माना जाए तो उस हिसाब से अगर कोई आदमी शिक्षित होगा तो वह सिर्फ अपना विकास कर पायेगा पर वहीं अगर कोई महिला सही शिक्षा हासिल करती है तो वह अपने साथ साथ पूरे समाज को बदलने की ताकत रखती है।
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास-रजत-नग-पगतल में,
पियूष-स्त्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में।
आज अगर महिलाओं की स्थिति की तुलना सैकड़ों साल पहले के हालात से की जाए तो यही दिखता है महिलायें पहले से कहीं ज्यादा तेज गति से अपने सपने पूरे कर रही है। पर वास्तविक परिपेक्ष में देखा जाए तो महिलाओं का विकास सभी दिशाओं में नहीं दिखता खासकर ग्रामीण इलाक़ों में। भले ही महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों लेकिन आज भी महिलाओं का एक बड़ा तबका ऐसा है जो खुद को हीन और दूसरों पर निर्भर मानता है। अपने पैरों पर खड़े होने के बाद भी महिलाओं को समाज की बेड़ियाँ तोड़ने में अभी भी काफी लंबा सफर तय करना है।
अपने व्यक्तित्व को समुन्नत बनाकर राष्ट्रीय समृद्धि के संबंध में नारी कितना बड़ा योगदान दे सकती है इसे उन देशों में जाकर आंखों से देखा या समाचारों से जाना जा सकता है जहां नारी को मनुष्य मान लिया गया है और उसके अधिकार उसे सौंप दिए गए हैं, नारी उपयोगी परिश्रम करके देश की प्रगति में योगदान तो दे ही रही है साथ ही साथ परिवार की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ा रही है और इस प्रकार सुयोग्य बनकर रहने पर अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रही है, जिससे परिवार को छोटा सा
उद्यान बनाने और उसे सुरक्षित पुष्पों से भरा भूरा बनाने में सफल हो रही है।
प्रगति करने के साथ ही महिलाओं के साथ होने वाली दुर्घटनाओं के मामले में भी बढ़ोतरी हुई है। आमतौर पर महिलाओं को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है उनमे प्रमुख है दहेज-हत्या, यौन उत्पीड़न, महिलाओं से लूटपाट, नाबालिग लड़कियों से राह चलते छेड़-छाड़ इत्यादि। हिंसा से तात्पर्य है किसी को शारीरिक रूप से चोट या क्षति पहुंचाना।
किसी को मौखिक रूप से अपशब्द कह कर मानसिक परेशानी देना भी हिंसा का ही प्रारूप है। इससे शारीरिक चोट तो नहीं लगती परन्तु दिलों-दिमाग पर गहरा आघात जरूर पहुंचता है। ऐसे में सरकार द्वारा महत्वपूर्ण कदम तो उठाए ही जाने चाहिए साथ ही, महिलाओं को भी सतर्क और तत्पर रहना चाहिए।
वर्तमान युग को नारी उत्थान का युग कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, आज हमारे देश भारत की महिलाएं हर क्षेत्र में अपना पताका फेहरा रही है, मौजूदा सरकारें भी महिलाओं को हर क्षेत्र में अपना भविष्य निर्माण करने का अवसर उपलब्ध करा रही हैं जो महिलाओं के विकास के लिए रामबाण साबित हो रहा है। पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी किसी पर भार नहीं बनती वरन अन्य लोगों को सहारा देकर प्रसन्न होती है, यदि हम सभी विदेशी भाषा एवं पोशाक को अपनाने में गर्व महसूस करते हैं तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उनके व्यवहार में आने वाले सामाजिक न्याय की नीति को अपनाएं और कम से कम अपने घर में नारी की स्थिति सुविधाजनक एवं सम्मानजनक बनाने में भी पीछे ना रहे।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित करने का उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों तथा विश्व शांति को बढ़ावा देना है। सबसे पहले साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था। लेकिन अब लगभग सभी देशों में इसे मनाया जाता है। कई जगहों पर महिलाओं को उनकी अनोखी उपलब्धियों के लिए सम्मानित करने के साथ गिफ्ट्स दिए जाते हैं और संस्थानों से लेकर स्कूल, कॉलेजों में कई तरह के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
महिलाओं की जिंदगी आसान नहीं होती। पहले अपने पिता की छत्र-छाया और फिर पति के आदेशानुसार गृहस्थी संभालना। हालांकि, समय के साथ महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन देखने को मिल रही है। आज के समय में महिलाएं कई ऊंचे पदों पर आसीन हैं। फिर भी घर की बागडोर को महिलाओं को ही संभालनी पड़ती है।
बहुत ही कम जगहों पर महिलाओं और पुरुषों को समान नजरों से देखा जाता है। दफ्तर के साथ-साथ महिलाओं के पास घर और परिवारवालों की जिम्मेदारी भी होती है जबकि पुरुष ऑफिस आने के बाद या तो टीवी के सामने बैठा पाया जाता है या फिर अपने किसी काम में।
अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है । विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि 8 मार्च को इंटरनेशनल विमेंस डे है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि देश, दुनिया, भाषा, संस्कृति और रहन-सहन की सीमाओं से परे इस दिन पूरे विश्व की महिलाएं एक हैं। आज वे जिस भावना को महसूस करेंगी, उसमें समानता मुख्य भाव है। समानता ही वह शब्द है, जो इस दिवस को वजूद में लाया है। अब महिलाओं ने अपनी पहचान कायम कर ली है ऐसे में इसे कायम रखना सभी महिलाओं के लिए चुनौती भी है और दायित्व भी।
घर, परिवार और समाज में महिलाओं की बढ़ती भागेदारी इस बात का प्रतीक है कि अब महिलाओं का सशक्तिकरण महज नारा या सिद्धांत नहीं रह गया है, यह जीता जागता सच और प्रैक्टिकल है। हालात पहले से जरूर बदले हैं लेकिन पूरी तरह से अभी भी नहीं बदल पाए हैं। महिलाओं की समस्याएं अभी भी बनी हुईं हैं। जब तक समाज का रवैया नहीं बदलेगा, महिलाओं की स्थिति संपूर्ण रूप से नहीं सुधरेगी।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि 8 मार्च को इंटरनेशनल विमेंस डे है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि देश, दुनिया, भाषा, संस्कृति और रहन-सहन की सीमाओं से परे इस दिन पूरे विश्व की महिलाएं एक हैं। आज वे जिस भावना को महसूस करेंगी, उसमें समानता मुख्य भाव है। समानता ही वह शब्द है, जो इस दिवस को वजूद में लाया है। अब महिलाओं ने अपनी पहचान कायम कर ली है ऐसे में इसे कायम रखना सभी महिलाओं के लिए चुनौती भी है और दायित्व भी।
घर, परिवार और समाज में महिलाओं की बढ़ती भागेदारी इस बात का प्रतीक है कि अब महिलाओं का सशक्तिकरण महज नारा या सिद्धांत नहीं रह गया है, यह जीता जागता सच और प्रैक्टिकल है। हालात पहले से जरूर बदले हैं लेकिन पूरी तरह से अभी भी नहीं बदल पाए हैं। महिलाओं की समस्याएं अभी भी बनी हुईं हैं। जब तक समाज का रवैया नहीं बदलेगा, महिलाओं की स्थिति संपूर्ण रूप से नहीं सुधरेगी।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को सबसे पहली बार वर्ष 1911 में आधिकारिक रूप से पहचान मिली थी। उसके बाद वर्ष 1975 में यूनाइटेड नेशन्स (संयुक्त राष्ट्र) ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाना शुरू किया। 1908 में न्यूयार्क में कपड़ा श्रमिकों ने हड़ताल कर दी थी। उनके समर्थन में महिलाएं खुलकर सामने आईं थीं। उन्हीं के सम्मान में 28 फरवरी 1909 के दिन अमेरिका में पहली बार सोशलिस्ट पार्टी के आग्रह पर महिला दिवस मनाया गया था।
1910 में महिलाओं के ऑफिस की नेता कालरा जेटकीन ने जर्मनी में इंटरनेशनल विमेंस डे मनाए जाने की मांग उठाई थी। उनका सुझाव था कि दुनिया के हर देश को वहां रहने वाली महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए।
समाज के महान महिलाओं को सम्मान देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को पूरे विश्व में मनाया जाता है। लैंगिक समानता लाने के लिए महिलाओं का सशक्तीकरण बहुत जरूरी है। वैसे समाज का विकास बहुत अच्छी तरह से होता है जहां महिलाओं को समान इज्जत और सम्मान दिया जाता है। अधिकांश परंपरागत लोगों को अब भी लगता है कि महिलाओं को घर के कामों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए और बाहर के काम-काजों के लिए कदम नहीं उठाना चाहिए क्योंकि ये उनका कार्य क्षेत्र नहीं है।
महिलाओं के पास पुरुषों जितनी समान क्षमता है बशर्ते उन पर भरोसा किया जाए। आज की महिलाएं अपनी शक्तियों और क्षमताओं का एहसास करती हैं और समाज तथा विश्व में फलस्वरूप योगदान करने के लिए घर से बाहर निकलती हैं। हर महिला विशेष है चाहे वह घर पर या दफ्तर में काम कर रही हो या दोनों ही कर रही हो। वह बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अपने घर को भी कुशलतापूर्वक मैनेज करती है।
शिक्षा महिलाओं को सशक्त बनाने के सबसे महत्वपूर्ण माध्यमों में से एक है। शिक्षा, कौशल एवं आत्मविश्वास विकास की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अंग हैं। शिक्षा महिलाओं को चयन करने की शक्ति देती है, जिससे उनका कल्याण, स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित होती है एवं सतत परिवारों का विकास होता है।
साथ ही शिक्षा महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक बनाती है, उनका आत्मविश्वास बढ़ाती है और उन्हें अपने अधिकार हासिल करने का अवसर देती है। शिक्षित महिलाएं पुरुषों के समान ही देश को विकास पथ पर आगे ले जाने में योगदान देती हैं। शिक्षित महिलाएं अपने साथ-साथ पूरे समाज का भला करती हैं।
कुशल गृहिणी से लेकर एक बिजनेसवुमन तक, महिलाएं अपनी हर भूमिका शत-प्रतिशत निभाती हैं। 8 मार्च को विमेंस डे के तौर पर मनाया जाता है, इस दिन महिलाओं को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाता है व लैंगिक एकता और समानता को प्रोत्साहित किया जाता है।
इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2020 की थीम #EachforEqual है, जो लैंगिक रूप से समान एवं सशक्त दुनिया पर केंद्रित है। इस दिन न केवल महिलाएं अपनी खुशी जाहिर करती हैं, बल्कि सभी पुरुष भी उनका आदर -सत्कार और प्रोत्साहित करते हैं ताकि हर लिंग का व्यक्ति एक समान दुनिया का निर्माण कर सके।
आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी अलग पहचान बना रही हैं, अपना मुकाम खुद तय कर रही हैं। महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए ही विमेंस डे मनाया जाता है। महिला दिवस राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर महिलाओं के समान अधिकारों को देखते हुए विश्व भर में मनाया जाता है। हर साल 8 मार्च को मनाए जाने वाले इस दिन को पहली बार सन् 1909 में मनाया गया था।
महिलाओं को समर्पित इस दिन पर कई जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिस में महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इस दिन को मनाने के पीछे सबसे बड़ी वजह हैं कि महिलाओं को शिक्षा में बढ़ावा, करियर के क्षेत्र में कई अवसर और पुरुषों के जैसे ही समान अधिकार मिल सकें।