भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव की खबरें हर न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर छाई हुई हैं। हर तरह सिर्फ ऑपरेशन सिंदूर या फिर अन्य हमले की खबर छाई हुई है। ऐसे में यह मुमकिन है कि बड़े ही नहीं बल्कि आपके बच्चे ने भी इन घटनाओं के बारे में कुछ सुना हो और आपसे कई तरह के सवाल पूछना शुरू कर दिया हो, जैसे – युद्ध क्या होता है? अगर युद्ध हुआ तो क्या होगा या इसका मतलब क्या होता है?” । ऐसे में आप परेशान हो जाते हैं कि आखिर बिना पैनिक किए हुए ऐसी सिचुएशन को कैसे संभाला जाए और बच्चे के मानसिक स्थिति के आधार पर उन्हें बताया जाएं। ऐसे समय में जरूरी है कि आप उनसे शांतिपूर्वक बात करें और उन्हें बेहद सरल भाषा में चीज़ें समझाएं। मर्लिन हेल्थ के मनोचिकित्सक संस्थापक और सीईओ डॉ. टोन्मॉय शर्मा से जानें कि कैसे आप पैनिक हुए अपने बच्चों को मौजूदा तनाव के बारे में कैसे बताएं?

करें खुलकर बात

सबसे पहले उनसे पूछें कि वे इस बारे में क्या जानते हैं और उन्हें सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करें – ताकि वे न तो खुद को अकेला महसूस करें, न ही उलझन में रहें। उनके समाचार देखने की समय-सीमा तय करें और घर की दिनचर्या को सामान्य बनाए रखें – इससे उन्हें स्थिरता का एहसास होगा।

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कहीं बच्चा स्ट्रेस में तो नहीं?

बच्चों में चिंता के लक्षण दिख सकते हैं, वे अधिक चिपक सकते हैं या नींद में परेशानी हो सकती है। ऐसे में उन्हें ड्राइंग, बातचीत या दूसरों की मदद जैसे छोटे लेकिन सार्थक कामों से जोड़ना बहुत फायदेमंद हो सकता है।

उन्हें दिलाएं पूरा भरोसा

हालांकि हो सकता है कि बच्चा हालात की जटिलता को पूरी तरह न समझ पाएं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि आप जो कुछ भी उन्हें बताते हैं, वही वे भीतर तक आत्मसात करते हैं। इसलिए उन्हें यह भरोसा देना बेहद जरूरी है कि सब कुछ ठीक है और आप उनके साथ हैं।

नफरत फैलाने से बचें

आज के समय में सोशल मीडिया या फिर अन्य माध्यमों से तनाव के बीच विभिन्न प्रकार की नफरत भी फैल रही है।  ऐसे में इस बात का रखें कि इस मुश्किल समय में भी नफरत फैलाने से बचना चाहिए। इसकी जगह हमें ऐसे माहौल बनाने की ज़रूरत है जो बच्चों के लिए सुरक्षित और सहायक हों। अंत में याद रखिए – बच्चे अक्सर हमारी सोच से कहीं ज़्यादा मजबूत और समझदार होते हैं।

बच्चों से करते रहें लगातार बात

अपने बच्चों से लगातार बातचीत करते रहें। वे भले ही किसी कठिन समय से गुजर रहे हों, लेकिन बार-बार भरोसा दिलाना उन्हें यह महसूस कराता है कि यह एक बार की बातचीत नहीं है। स्कूल जाने और दोस्तों से बातचीत जैसी सामान्य चीज़ें उनके जीवन का हिस्सा बनी रहती हैं, इसलिए स्कूल के बाद उनसे बात करना और भी जरूरी हो जाता है।

सबसे अहम बात

अपने जज़्बातों को भी ध्यान में रखें। आप जैसे महसूस कर रहे हैं, उसे उम्र के हिसाब से बच्चों के साथ साझा करें, क्योंकि बच्चे अपने आसपास के बड़ों की भावनाओं को बहुत जल्दी समझ लेते हैं। साथ ही, उनके उम्र के हिसाब से समर्थन देना ज़रूरी है। एक किशोर को जिस तरह की बातचीत और समझ की ज़रूरत है, वह छह साल के बच्चे से बिल्कुल अलग हो सकती है—जो शायद ‘युद्ध’ शब्द का मतलब भी ठीक से नहीं समझता।