Baba Ramdev: योग गुरु स्वामी रामदेव बचपन से ही बेहद जिद्दी स्वभाव के थे। एक बार कोई चीज ठान लेते तो उसे पूरा किए बगैर दम नहीं लेते। ऐसा ही एक वाकया तब हुआ जब उन्होंने अपने पिता को हुक्का और बीड़ी पीते देखा और इस लत को छुड़वाने का प्रण ले लिया। आपको बता दें कि बाबा रामदेव मूल रूप से हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के सैद अलीपुर गांव के रहने वाले हैं। हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में हुक्का एक तऱीके से परंपरा का हिस्सा रहा है।

रामनिवास यादव और गुलाब देवी के 4 बच्चों में दूसरे नंबर की संतान बाबा रामदेव ने जब अपने पिता को हुक्का-बीड़ी पीते देखा तो उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। एक दिन रामनिवास यादव अपनी बैठक में हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे इसी दौरान बचपन में रामकिशन के नाम से जाने जाने वाले बाबा रामदेव उनके पास जाकर खड़े हो गए। दो टूक कह दिया कि आपका यह हुक्का बीड़ी पीना मुझे कतई पसंद नहीं है। आजसे आपको हुक्का बीड़ी छोड़ना ही पड़ेगा।

हुक्का नहीं छोड़ा तो…: वरिष्ठ पत्रकार संदीप देव बाबा रामदेव की जीवनी “स्वामी रामदेव: एक योगी-एक योद्धा” में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि बाबा रामदेव ने अपने पिता से कह दिया कि अगर उन्होंने हुक्का और बीड़ी नहीं छोड़ी तो वे भोजन छोड़ देंगे और हुआ भी सचमुच ऐसा ही। उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। अंत में उनकी जिद के आगे पिता रामनिवास यादव को झुकना पड़ा।

बचपन में रहते थे गुमसुम: स्वामी रामदेव बचपन के दिनों में गुमसुम और खोए-खोए से रहते थे। उनकी मां गुलाब देवी के मुताबिक वह (बाबा रामदेव) घंटों गुमसुम रहते। फिर जैसे जैसे बड़े होते गए, कहने लगे कि मुझे सन्यासी बनना है। हालांकि तब परिवार के लोग इसे हंसकर टाल जाते थे। उनकी मां कहती हैं कि स्वामी रामदेव बचपन में कभी दूसरे बच्चों की तरह किसी चीज के लिए जिद भी नहीं करते थे।

छठवीं कक्षा में पकड़ ली सन्यासी बनने की ज़िद: बाबा रामदेव के माता पिता के मुताबिक जब वे छठी कक्षा में थे तभी उनका मन सन्यास तरफ भागने लगा। यही वह वक्त था जब वे अपने परिवार से बार-बार सन्यासी बनने की बात कहते थे। स्वामी रामदेव कहते हैं कि छठवीं कक्षा में ही मेरे अंदर ऐसा भाव आया कि मुझे घर परिवार छोड़कर बाहर निकलना है। मैं संसार और गृहस्थ जीवन के लिए बना ही नहीं हूं।