मनुष्य में घबराहट डर, चिंता या आशंका की भावना बनी रहती है। कभी-कभी घबराहट महसूस होना सामान्य बात है। हालांकि, घबराहट आमतौर पर अस्थायी और किसी विशेष स्थिति तक सीमित होती है। यह चिंता या किसी विकार का लक्षण भी हो सकता है। मगर, जब घबराहट अत्यधिक या लगातार होती है, तो इससे व्यक्ति के दैनिक जीवन में कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
क्यों बढ़ रही घबराहट की समस्या
आज के बदलते दौर में जीवन की चुनौतियां, महत्त्वाकांक्षा और आत्मविश्वास की कमी का दायरा बढ़ता जा रहा है, जिससे घबराहट का जोखिम भी बढ़ गया है। घबराहट, चिंता से आगे की कड़ी है। यह अपने आप में अस्थायी होती है और इसका एक ज्ञात कारण होता है। यह आमतौर पर किसी व्यक्ति को उस काम को करने से नहीं रोकती, जिससे वह घबराया हुआ हो। जब वह उस कार्य को पूरा कर लेता है, तो उसकी घबराहट दूर हो जाती है।
सकारात्मक और नकारात्मक पहलू
दरअसल, घबराहट हमारी उस धारणा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, जो हमें इस बात का अहसास दिलाती है कि कुछ गलत हो सकता है। घबराहट हमें सतर्क रहने का संदेश देती है, यानी यह सुरक्षा की लिहाज से मददगार हो सकती है। मगर, इसके सकारात्मक परिणाम कम और नकारात्मक नतीजे ज्यादा सामने आते हैं।
घबराहट से होती है कई परेशानी
सामान्य घबराहट किसी विशेष परिस्थिति में होती है, जैसे परीक्षा देने से पहले, भीड़ के सामने बोलते समय या नौकरी के लिए साक्षात्कार के दौरान। ऐसी स्थिति में अगर घबराहट को समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए तो इसका असर हमारे प्रदर्शन पर पड़ सकता है। लगातार घबराहट में हमारी क्षमता भी प्रभावित होती है।
संवादहीनता से बचें
कई बार संवादहीनता की वजह से भी घबराहट पैदा होती है। अपने मन की बात किसी दूसरे से न कह पाने के कारण व्यक्ति के भीतर अंतर्द्वंद्व की स्थिति पैदा हो जाती है, जिससे घबराहट होने लगती है। भले ही हम इस बात को लेकर भी घबराहट महसूस करते हों कि अपने विचार व्यक्त करने के बाद उसका नतीजा क्या होगा, लेकिन एक बार इस दिशा में कदम बढ़ा देने के बाद घबराहट अपने आप खत्म हो जाती है। संवाद स्थापित करने का मतलब है कि हम अपने सुख-दुख और चिंता को साझा करते हैं, जो न केवल संबंधों को प्रगाढ़ बनाता है, बल्कि तनाव और घबराहट को भी कम करता है।
घबराहट पर कैसे पाएं नियंत्रण?
परिस्थितिजन्य घबराहट सामान्य है, लेकिन यह अप्रिय और ध्यान भटकाने वाली भी हो सकती है। इसे विभिन्न तरीकों से नियंत्रित किया जा सकता है। मसलन, खुद में आत्मविश्वास का भाव जागृत करना, छोटी-छोटी बातों को लेकर चिंतित न होना और संवाद के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना। हमें इस बात से अवगत रहना चाहिए कि कौन-सी चीजें हमें परेशान करती हैं, ताकि उससे निपटने के लिए मानसिक रूप से खुद को तैयार कर सकें।
ध्यान और योग का लें सहारा
ध्यान व योग से भी घबराहट को नियंत्रित किया जा सकता है। मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बनाएं। इससे आत्मविश्वास को कायम रखने में मदद मिलती है। अगर घबराहट किसी चिंता या विकार की वजह से है तो चिकित्सीय परामर्श लेना जरूरी है।