Holi 2018 Puja Vidhi, Muhurat, Time, Procedure: रंगों के त्योहार होली का इंतजार हर किसी को रहता है और अपने आपको विभिन्न रंगों में पाते हैं। रंगों की होली को धुलंडी के नाम से जाना जाता है। होलिका दहन के उत्सव को होली कहा जाता है, यह पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इस वर्ष 1 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा और 2 मार्च को धुलंडी यानी रंग वाली होली खेली जाएगी। इस दिन कई लोग भगवान विष्णु का पूजन करते हैं और अपनी आस्था को मजबूत करने का प्रयास करते हैं।
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन यानी रंग वाली होली पर सुबह उठकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण किया जाता है और साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए पूजा की जाती है। घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल का निर्माण किया जाता है और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा की जाती है। ऐसा करने से आयु वृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल में किया जाता है।
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होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है। पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल, रोली, अक्षत, गंध के लिए धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेहूं की बालियां, पक्के चने लिया जाता है। होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन के मुहूर्त में चार मालाएं रखी जाती हैं जो मोली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं। एक माला पितरों, एक श्री हनुमान, तीसरी शीतला माता, चौथी घर-परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके बाद होलिका की परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है और तीन से सात बार परिक्रमा की जाती है। इसके बाद गंगाजल सहित अन्य सामग्री होलिका को अर्पित की जाती है।

