भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति और कांग्रेस नेता रह चुके फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर, 1912 को मुंबई में हुआ था। इंदिरा गांधी से उनकी दोस्ती बचपन से थी। हालांकि लंदन में पढ़ाई के वक्त उनकी दोस्ती और गहरी होती चली गई थी। साल 1942 में दोनों शादी के बंधन में बंधे थे। लेकिन शादी के बाद से ही इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी में मतभेद होने शुरू हो गए थे। एक वक्त तो ऐसा भी आया था, जब फिरोज गांधी ने पत्नी के फैसले से नाराज होकर तीन मूर्ति भवन में कभी कदम न रखने की कसम खा ली थी। इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने अपनी यह कसम आजीवन निभाई भी थी।

इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के बीच यह मतभेद राजनीति के कारण शुरू हुए थे। दरअसल, कांग्रेस की अध्यक्ष बनने के बाद इंदिरा गांधी ने केरल में नंबूदरीपाद की सरकार को असंवैधानिक तरीके गिरा दिया, साथ ही राज्य में राष्ट्रपति शासन तक लगवा दिया। पूर्व प्रधानमंत्री के इस फैसले से ही दोनों के बीच राजनैतिक मतभेद होने शुरू हो गए।

मशहूर पत्रकार इंद्र मल्होत्रा का इस बारे में कहना था, “1959 में इंदिरा गांधी ने असंवैधानिक तरीके से केरल में कम्यूनिस्ट सरकार को गिराया था। उनके इस फैसले के कारण फिरोज गांधी व इंदिरा गांधी में काफी झगड़ा हुआ था। उन्होंने मुझसे इस बारे में बताया था कि लोग तो आपको कुछ न कुछ उल्टा सीधा बताएंगे। लेकिन मैं ही आपको पूरी बात बता देता हूं।”

इंद्र मल्होत्रा ने फिरोज गांधी की बात का जिक्र करते हुए कहा था, “उन्होंने बताया कि आज मेरे और इंदिरा के बीच सख्त झगड़ा हुआ और आज से मैं कभी भी प्रधानमंत्री के घर में नहीं जाऊंगा।” इंद्र मल्होत्रा ने बताया था कि फिरोज गांधी अपने शब्दों पर कायम रहे और जब उनकी मौत हो गई, तब उन्हें तीन मूर्ति भवन ले जाया गया। वरना उससे पहले वह कभी वहां नहीं गए थे।

इंदिरा गांधी को लेकर यह भी कहा जाता है कि उन्होंने पिता की इच्छा के विरुद्ध फिरोज गांधी से शादी की थी। दरअसल, पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी की शादी फिरोज गांधी से हो। ऐसे में उन्होंने अपनी बेटी को उनकी खराब तबीयत का भी हवाला दिया था। लेकिन इंदिरा गांधी अपने फैसले पर अड़ी रहीं और फिरोज गांधी से शादी की। हालांकि शादी के कुछ सालों बाद ही दोनों के रिश्ते में दरार आनी शुरू हो गई थी।

यूं तो फिरोज गांधी कांग्रेस के ही नेता थे। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब वह अपने ससुर यानी पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार का ही विरोध करने लगे थे। एक बार उन्होंने अपने ही ससुर की सरकार पर ऐसा हमला बोला था कि पंडित नेहरू के सबसे करीबी नेता टीटी कृष्णमचारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।