Dr Vikas DivyaKirti Drishti IAS Video Controversy: देश भर में IAS गुरु डॉ विकास दिव्यकीर्ति (Dr Vikas Divyakirti) के विवादित वीडियो क्लिप को लेकर बवाल मचा हुआ है। सोशल मीडिया पर जहां एक तरफ कुछ लोग विकास दिव्यकीर्ति को हिंदू विरोधी बताकर भगवान श्रीराम और देवी सीता का अपमान करने का आरोप लगा रहे हैं, तो दूसरी तरफ एक धड़ा उनका समर्थन भी कर रहा है।
जिस वीडियो को विवादित बताया जा रहा है उसमें दिव्यकीर्ति कथित तौर पर रामायण की चौपाइयों का जिक्र करते हुए श्री राम का हवाला देकर सीता जी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी कर रहे हैं। इसी मामले को लेकर लल्लनटॉप को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कुछ अपने बारे में रोचक कहानी भी सुनाएं हैं, आइए जानते हैं-
लल्लनटॉप के एडिटर सौरभ द्विवेदी ने विकास दिव्यकीर्ति से पूछा कि आपके बारे में बहुत सारी चीजें लिखी जाती हैं, इसपर उन्होंने कहा कि, “सब अफवाह है। गूगल पर अधिकांश बातें गलत हैं। जैसे जन्मतिथि को लेकर गलत जानकारी उपलब्ध है। जैसे मेरा जन्म वर्ष 1973 है किसी ने मेरा 1976 लिखा है, इसपर कुछ लोग सवाल उठा हैं कि 1996 में 20 वर्ष की आयु में इनका यूपीएससी के लिए चयन कैसे हो गया?”
कौन हैं Drishti IAS के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति?
डॉ. विकास दिव्याकीर्ति का जन्म 26 दिसंबर 1973 को हरियाणा के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे। उनके माता-पिता दोनों हिंदी के प्रोफेसर थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री ली। हिंदी साहित्य में एमए, एमफिल और फिर पीएचडी की। दिव्यकीर्ति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया, लेकिन 1996 में अपने पहले प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली।
उन्हें गृह मंत्रालय में आईएएस अधिकारी के रूप में पोस्टिंग मिली। कुछ समय काम किया, लेकिन मन नहीं लगा तो एक साल बाद इस्तीफा दे दिया। बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता था इसलिए उन्होंने कोचिंग सेंटर खोलने का फैसला किया। 1999 में डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने ने ‘दृष्टि IAS’ कोचिंग संस्थान की स्थापना की। आज उनके Drishti IAS के यूट्यूब चैनल पर 95 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं।
दिल्ली पहुंचकर आंदोलन से जुड़ गए थे विकास दिव्यकीर्ति
विकास दिव्यकीर्ति ने बताया कि उन्हे नहीं पता था कि ओबीसी और एससी-एसटी क्या होता है। बस उन्होंने देखा कि उनके समूह के अधिकांश लोग विरोधी आंदोलन में हैं; आगे उन्होंने कहा कि, “साढ़े 16 की उम्र में दिल्ली आना और आंदोलन से जुड़ा और क्या चाहिए।”
आगे उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में आने का मेरा इकलौता मकसद था कि मुझे राजनीति में जाना था। चूंकि मेरे पिता जी कि भी यही इच्छा थी। इसपर सौरभ ने कहा कि “विकास नेता बनेगा”…आगे उन्होंने कहा कि हां, लेकिन छोटा मोटा नेता बनने की नहीं, पिता जी की उम्मीद काफी बड़ी थी। सौरभ द्विवेदी ने पूछा कि मुख्यमंत्री? इसपर उन्होंने कहा कि उससे भी बड़ा ….
जब चुनाव नहीं लड़ने का मिला निर्देश
विकास ने बताया, “फर्स्ट ईयर खत्म होने से पहले घर में कुछ संकट आ गया। जो समृद्ध परिवार था वह सड़क पर आ गया, तो मैंने प्रथम वर्ष की परीक्षा किसी तरह से दिया, मुझे निर्देश मिला कि चुनाव नहीं मिला लड़ना तो मैं नहीं लड़ा।” इसपर सौरभ ने पूछा कि क्या यह निर्देश विद्यार्थी परिषद की तरफ से दिया गया था ?
विकास दिव्यकीर्ति ने बताया कि, “कुछ ऐसे लोग जो वहां से भी जुड़े हुए थे और कॉलेज में भी सीनियर थे उन्होंने बताया कि लाइफ का रिस्क है। यह बात बाद में सही साबित हुई, क्योंकि जिस लड़के को चुनाव लड़वाया गया था उसे बाद में चाकुओं से मारा गया। हालांकि अभी वो जिंदा हैं और 3-4 दोस्त मेरे उस समय के जिनमें से 3 की मृत्यु भी हो चुकी है। जो उस दौर में चुनाव जीते थे। मैं 10 से 15 साल ऐसे दौर में रहा लेकिन कभी रोया नहीं, मैंने खुद को पत्थर दिल इंसान मान लिया था।”
उन्होंने आगे बताया, “मुझे लगता था कि मेरे अंदर भावनात्मक संवेदनशीलता वैसी नहीं है जैसी किसी सामान्य व्यक्ति में होनी चाहिए। शायद फ़िलॉसफ़ी पढ़कर ऐसा हुआ हो, लेकिन जब मां की मृत्यु हुई तो जो भ्रम था वो टूट गया, मैं 7 से 8 दिन तक उसके बाद बोल ही नहीं पाया।”