आज के दौर में भले ही इंसान तरक्की की नई-नई सीढ़ियां चढ़ रहा है, लेकिन सफल जीवन के मूल आधार में शामिल शिष्टाचार के तत्त्व को भूलता जा रहा है। शिष्टाचार एक ऐसी सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपना जरूरी है, ताकि समाज में इसके मूल्य हमेशा बने रहें।

शिष्टाचार का अर्थ है शिष्ट, सभ्य और सम्मानजनक व्यवहार। यह एक नैतिक मापदंड है, जिसमें विनम्रता, सद्भावना, सम्मान और अनुशासन जैसे मूल्यों का पालन किया जाता है। यह समाज के हर सदस्य को दूसरों के प्रति सम्मान दिखाने और उनकी भावनाओं का आदर करने में मदद करता है, जिससे आपसी सद्भाव और सामंजस्य बढ़ता है। शिष्टाचार समाज को सुसंस्कृत और व्यवस्थित बनाता है। यह आत्मीयता, सहयोग और उदारता का प्रतीक भी है।

सम्मान की पूंजी

शिष्टाचार का मतलब है कि मन, वचन और कर्म से किसी को हानि न पहुंचाना। अच्छा या बुरा, हमारे उस व्यवहार पर निर्भर करता है, जो हम दूसरों से करते हैं। शिष्ट व्यवहार का दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, जबकि अशिष्ट व्यवहार दूसरों में घृणा और द्वेष पैदा करता है। अशिष्ट व्यक्ति को कोई आत्मीय सहयोगी नहीं मिल पाता है।

अशिष्टता हमारे व्यक्तित्व विकास को अवरुद्ध कर देती है, रिश्तों में दरार पैदा कर सकती है और हमारे सोचने-समझने की क्षमता को भी प्रभावित करती है। जबकि, शिष्टाचार सम्मान की वह पूंजी है, जो घर-परिवार और समाज में हमें बिना परिश्रम के मिलती है। शिष्ट व्यवहार से सहज ही दूसरों की सद्भावना अर्जित की जा सकती है, जो जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए उपयोगी साबित होती हैं।

विनम्रता का भाव

हालात चाहे कुछ भी हों, व्यक्ति को हमेशा विनम्र बने रहने की कोशिश करनी चाहिए। यह थोड़ा कठिन हो सकता है, लेकिन असंभव नहीं है। इसका एक फायदा यह होता है कि आपकी बात अंत तक सुनी और समझी जाएगी। परिस्थितियों की लिहाज से खुद को नियंत्रित करना, दूसरों के भावों को समझकर संयमित एवं उचित प्रतिक्रिया देना और बोलचाल में शालीन शब्दों का चयन भी शिष्टाचार के दायरे में आता है।

विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक है, पर बात बढ़ाने के बजाय तर्कसंगत तरीके से मध्यम मार्ग निकालकर किसी निर्णय पर पहुंचना व्यक्ति को विशेष और श्रेष्ठ बनाता है। अपनी गलतियों को स्वीकार करना, अकारण किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाना और दूसरों के विचारों का सम्मान करना शिष्टाचार के साथ-साथ विनम्रता का भी प्रतीक है।

अभ्यास और आचरण

शिष्टाचार व्यवहार की वह रीति-नीति है, जिसमें व्यक्ति और समाज की आंतरिक सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं। यह एक ऐसा सद्गुण है, जिसे अभ्यास और आचरण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। शिष्टाचार का संबंध वास्तव में दिल की गहराइयों से होता है, यह सिर्फ औपचारिकतापूर्ण नहीं होना चाहिए।

आजकल के तथाकथित सभ्य और पढ़े-लिखे समाज में बनावटी शिष्टाचार ज्यादा देखने को मिलता है, जिसमें आत्मीयता का अभाव साफ देखा जा सकता है। जिस शिष्टाचार में भावनाएं न हों, एक-दूसरे को सम्मान, प्रसन्नता और संतोष की अनुभूति न हो, वह शिष्टाचार व्यर्थ है।