इतिहास के पन्नों में अपनी बहादुरी के तमाम किस्से दर्ज कराने वाले शूरवीर सपूत महाराणा प्रताप की आज यानी 19 जनवरी को पुण्यतिथि है। महाराणा प्रताप के शौर्य और बहादुरी की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। उन्होंने अपने पराक्रम से मुगलों को नाकों चने चबवा दिए थे। बता दें महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में 9 मई, 1540 को हुआ था। वह महाराणा उदय सिंह और माता जयवंत कंवर की संतान थे। उनकी वीरता के अनेक किस्से मशहूर हैं।

महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ-साथ बेहद शक्तिशाली थे। कहा जाा है कि वह 7 फुट 5 इंच लंबे थे और अपने साथ हमेशा अपना मशहूर भाला और दो तलवारें रखते थे। इसके साथ ही वह 72 किलो का कवच भी धारण किया करते थे। लोक मान्यताओं की मानें तो महाराणा प्रताप हथियार, कवच और दूसरे साजो-सामान समेत कुल 200 किलो से ज्यादा वजन लेकर चलते थे।

मुगल शासक अकबर जब पूरे भारत पर कब्जा करने में जुटा था, तब मेवाड़ के वीर योद्धा राजा महाराणा प्रताप ने अपने राज्य को बचाने के लिए युद्ध लड़ा और विजय प्राप्त की। युद्ध के दौरान मुगलों के छक्के छुड़ा दिये थे।

कैसे हुई थी मौत? कहा जाता है कि महाराण प्रताप की मृत्यु धनुष की डोर खींचते वक्त उनकी आंत में चोट लगने से हुई थी। इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका और 57 वर्ष की उम्र में 19 जनवरी 1597 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी। यह भी कहा जाता है कि दुश्मनी के बावजूद महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर खुद अकबर भी रो पड़े थे।

हल्दी घाटी के युद्ध में दिखाया था कौशल: महाराणा प्रताप की बहादुरी के किस्सों में से एक 8 जून 1576 में हुआ हल्दी घाटी का युद्ध भी है। जहां महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की सेना के साथ युद्ध किया था। जिसमें वह आमेर राजा मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 5 हजार से 10 हजार से भिड़े थे। उन्होंने 3,000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धारियों का सामना किया था।

इस युद्ध में वह बुरी तरह जख्मी भी हुए थे। जिसके बाद उन्हें जंगल में रहना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी सेना को तैयार कर फिर से हमला बोला। कहा जाता है कि उन्हें कई दिनों तक जंगलों में रहना पड़ा था। इस दौरान उनके पास खाने की कोई ठीक व्यवस्था नहीं थी, लेकिन उन्होंने तब भी हार नहीं मानी थी।