भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सबसे करीबी लोगों की लिस्ट में जितेंद्र प्रसाद भी शामिल थे। लेकिन बम दुर्घटना में राजीव गांधी का आकस्मिक निधन हो जाता है। इसके बाद कांग्रेस में सत्ता की लड़ाई शुरू होती है और सोनिया गांधी इन सबसे दूर ही रहती हैं। धीरे-धीरे कांग्रेस कमजोर होती जाती है और कई बड़े नेताओं के कहने के बाद सोनिया गांधी आगे आती हैं। साल 1998 में कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी को सौंप दी जाती है।

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी थी और पार्टी लगातार चुनाव हारती जा रही थी। इन सबके बीच जब सोनिया पार्टी अध्यक्ष बनती हैं तो जितेंद्र प्रसाद को कुछ खास पद नहीं मिलता है। वरिष्ठ पत्रकार औरंगजेब नक्शबंदी ने ‘द लल्लनटॉप’ को बताया था, सोनिया को पार्टी की कमान मिलने के बाद जितेंद्र प्रसाद को वो तवज्जो नहीं मिली जिसके वो हकदार थे। अहमद पटेल जैसे नेता अचानक आगे आने लगे।

जितेंद्र प्रसाद को उकसाने लगे थे कांग्रेस नेता: इसके पीछे जितेंद्र प्रसाद का पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का करीबी होना भी था। सोनिया गांधी को राव के करीबी लोगों से सख्त परहेज था। इसके बाद कांग्रेस के कई नेताओं की नाराज़गी खुलकर सामने आने लगी। कांग्रेस के नेता भी जितेंद्र प्रसाद को चुनाव लड़ने के लिए उकसाने लगे। वरिष्ठ पत्रकार राशीद किदवई बताते हैं, ये नेता वही थे जो दूसरी तरफ सोनिया गांधी को दिलासा दे रहे थे कि चुनाव होगा तो हम संभाल लेंगे।

सोनिया गांधी को दी थी चुनौती: 1999 का चुनाव आता है और शरद पवार कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बना लेते हैं। जितेंद्र प्रसाद शाहजहाँपुर से चुनाव लड़ जाते हैं और एक तरफा जीत हासिल कर लेते हैं। इसके बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ गया था और उन्हें लगा कि वह पार्टी में ज्यादा के हकदार हैं।

साल 2000 में पार्टी अध्यक्ष के लिए कांग्रेस के आंतरिक चुनाव की घोषणा होती है और सोनिया को चुनौती दे देते हैं जितेंद्र प्रसाद। सब चौंक जाते हैं और जितेंद्र प्रसाद की करारी हार हो जाती है। इसके बाद जितेंद्र प्रसाद का आकस्मिक निधन हो जाता है।

पिता के निधन के बाद जितिन प्रसाद की राजनीति में एंट्री होती है। वह यूथ कांग्रेस के बड़े नेता बन जाते हैं। साल 2004 में जितिन लोकसभा चुनाव लड़ते हैं और शाहजहाँपुर से ऐतिहासिक जीत हासिल करते हैं। इसके बाद जितिन को केंद्रीय मंत्री भी बनाया जाता है। हालांकि बाद में