बिहार में छठ पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है। दरअसल, बिहार में सूर्य पूजा की परंपरा रही है। मान्यता के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी देवता को समर्पित है। इसके तहत रविवार के दिन भगवान भास्कर (सूर्य देव) की पूजा की जाती है। छठ महापर्व के दौरान हिंदू धर्मावलंबी भगवान भास्कर (सूर्य देव) को जल अर्पित कर आराधना करते हैं। ऋग्वैदिक काल से सूर्योपासना होती आ रही है।

केलवा जे फरेले घवद से उहे पर सुगा मंड़राए… मारबउ रे सुगवा धनुष से… कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए… होख न सुरुज देव सहइया बहंगी घाट पहुंचाए… पटना के घाट पर हमहूं अरघिया देबई हे छठी मइया… केलवा के पात पर उगेलन सुरुजदेव… आस्था की गहराइयों से निकले इन्हीं गीतों के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। सूर्योपासना का यह चार दिवसीय महापर्व नहाए-खाए से शुरू होता है। अगले दिन व्रती दिनभर उपवास में रहकर गोधुली वेला में खरना करते हैं। उसके अगले दिन अस्ताचलगामी सूर्य और फिर अगली सुबह उगते सूरज को अर्घ्य प्रदान करने के साथ यह महापर्व संपन्न होता है। चार दिवसीय छठ पर्व का प्रारम्भ कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को और समापन कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को होता है।

वीडियो: बिहार की राजधानी पटना के गंगा घाट पर छठ पूजा का दृश्य

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हिन्दू धर्म के पंच देवों में से एक सूर्य देव की पूजा से ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि आदि की प्राप्ति होती है। प्रतिदिन पूजा करने से व्यक्ति में आस्था और विश्वास पैदा होता है। सूर्य की पूजा मनुष्य को निडर और बलवान बनाती है। इससे अंहकार, क्रोध, लोभ, इच्छा, कपट और बुरे विचारों का नाश होता है। मानव परोपकारी स्वभाव का बनता है तथा आचरण कोमल और पवित्र होता है।

सूर्यदेव की आराधना के लिए इन मंत्रों का भी जाप करें :

नमामि देवदेवशं भूतभावनमव्ययम्।

दिवीकरं रविं भानुं मार्तण्ड भास्करं भगम्।।

इन्दं विष्णु हरिं हंसमर्क लोकगुरूं विभुम्।

त्रिनेत्रं र्त्यक्षरं र्त्यडंग त्रिमूर्ति त्रिगति शुभम्।।

सूर्य की पूजा के लिए सुबह स्नान कर सफेद वस्त्र पहनें और सूर्य देव को नमस्कार करें। फिर, तांबे के बर्तन में ताजा पानी भरें तथा नवग्रह मंदिर में जाकर सूर्य देव को लाल चंदन का लेप, कुकुंम, चमेली और कनेर के फूल अर्पित करें। सूर्य की प्रतिमा के आगे दीप प्रज्जवलित करें। मन में सफलता और यश की कामना करें तथा “ऊं सूर्याय नम:” मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को जल चढ़ाए। इसके बाद जमीन पर माथा टेककर मंत्र का जाप करें।