कैप्टन बनाम सिद्धू की जंग के बीच कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शनिवार को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे दिया। कैप्टन ने उस मुश्किल दौर में पंजाब में कांग्रेस को जीत दिलाई जब देश भर में मोदी-शाह का डंका बज रहा था और कई राज्यों से कांग्रेस का सफाया हो रहा था। साल 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत का श्रेय अमरिंदर सिंह को ही जाता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का कांग्रेस पार्टी से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। राजीव गांधी उनके स्कूल के दोस्त थे।
जवाहरलाल नेहरू के बंगले पर छुट्टियों में जाते थे अमरिंदर सिंह- अमरिंदर सिंह पटियाला के तत्कालीन रियासत के वंशज थे। वो राजीव गांधी के साथ दून स्कूल में पढ़ते थे। छुट्टियों में वो अक्सर राजीव गांधी के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू के बंगले पर आते थे। दोनों की दोस्ती काफी प्रगाढ़ थी और राजीव गांधी के साथ मिलकर वो छुट्टियों में नेहरू के आवास पर खूब मस्ती करते थे।
सिख रेजिमेंट में 3 साल की देश की सेवा- नेशनल डिफेंस एकेडमी और इंडियन मिलिट्री अकादमी के छात्र रहे अमरिंदर सिंह ने 1963 में सिख रेजिमेंट ज्वॉइन किया। हालांकि उन्होंने 3 साल बाद ही 1966 में सेना छोड़ दी। दरअसल कैप्टन ने 1965 की जंग से पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया था लेकिन जंग के कारण संवेदनशील माहौल को देखते हुए उन्हें वापस बुलाया गया था। हालांकि तब उन्होंने बस प्रशासनिक काम संभाला था।
राजीव गांधी लाए राजनीति में- राजीव गांधी ने ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को राजनीति का पाठ पढ़ाया था। उन्हीं के कहने पर आपातकाल के तुरंत बाद 1977 में वो पटियाला से चुनाव लड़े। इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन कैप्टन अमरिंदर को राजनीतिक दांव-पेंच की समझ हो चली थी। 1980 के लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी ने पंजाब में अकाली दल के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सिख नेता के रूप में अमरिंदर सिंह को चुनावी मैदान में उतारा। इस चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई और वो लोकसभा पहुंच गए।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद छोड़ दिया कांग्रेस- साल 1984 में जब गोल्डन टेंपल पर सैन्य कार्रवाई हुई ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत, तब अमरिंदर कांग्रेस से बेहद नाराज़ हुए। वो कई बार याद करते हैं कि जब उन्हें रेडियो पर ऑपरेशन ब्लू स्टार की खबर मिली तब वो हिमाचल के नालदेहरा में गोल्फ खेल रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा था कि वो आतंकवाद के काले दशक के दौरान पंजाब में सामने आई घटनाओं पर एक किताब लिखेंगे।
इस घटना के बाद उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया और कांग्रेस पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया। इसके बाद वो अकाली दल में शामिल हो गए। उस वक्त पंजाब में अकाली दल की सरकार थी। उन्हें तत्कालीन सुरजीत सिंह बरनाला सरकार में मंत्री बना दिया गया। लेकिन अमरिंदर की राजनीतिक यात्रा यहां भी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और उन्होंने अकाली दल छोड़कर अपनी खुद की पार्टी अकाली दल (पंथक) बनाई।
पार्टी ने तीन बार विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन लोगों का प्यार कैप्टन को नहीं मिल सका। साल 1998 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। साल 2002 में कैप्टन ने पंजाब में कांग्रेस को जीत दिलाई और वो मुख्यमंत्री बने।