गर्भावस्था के दौरान महिलाओं कई तरह की समस्याएं जूझती हैं। हार्मोन्स में बदलाव के कारण सांस फूलना, उलटियां आना और मूड स्विंग्स होना आम बात है। हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में सांस फूलना आम बात है, लेकिन इसके बाद भी अगर स्थिति नहीं सुधर रही, तो इसका कारण अस्थमा या एनीमिया की बीमारी भी हो सकती है। इसके अलावा सांस फूलने के और भी कई कारण हो सकते हैं।
गर्भावस्था में सांस फूलने की दो स्थितियां होती हैं, जिन्हें फिजियोलॉजिकल और पैथोलॉजिकल कहा जाता है। जानिये इन दोनों स्थितियों में क्या फर्क होता है।
खून की कमी: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में खून की कमी के कारण भी सांस फूलती है। यह एक फिजियोलॉजिकल स्थिति है। एक्सपर्ट्स की मानें तो प्रेग्नेंसी के दौरान ज्यादातर महिलाओं में खून की कमी हो जाती है। क्योंकि, गर्भावस्था के दौरान खून का वॉल्यूम बढ़ जाता है, जिसकी वजह से वह पतला हो जाता है। इसलिए शरीर में ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है। इसके अलावा शरीर में हिमोग्लोबिन की कमी के कारण भी सांस लेने में दिक्कत होती है।
यूटरस का बढ़ना: गर्भावस्था के दौरान शरीर में यूटरस बढ़ने लगता है, जिसके कारण महिलाओं में सांस फूलने की दिक्कत होती है। यूटरस के बढ़ने से डायफ्राम ऊपर-नीचे होता है, जिसके कारण सांस फूलती है।
तनाव: गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाएं काफी तनाव में रहती हैं। एंग्जाइटी के कारण उनका सांस फूलने लगता है।
पैथोलॉजिकल कारण: प्रेग्नेंसी से पहले अगर किसी महिला को कोई दिक्कत है और गर्भावस्था के दौरान वह बढ़ जाती है, तो उसके कारण भी सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
बैठने का तरीका: डॉक्टर्स की मानें तो गर्भावस्था में बैठने के तरीके से आपकी सांस फूलने की समस्या खत्म हो सकती है। अस्थमा के मरीज भी सांस फूलने की समस्या को बैठकर कंट्रोल कर सकते हैं। हालांकि, इस दौरान आपका पाश्चर बिल्कुल ठीक होना चाहिए। इसके लिए तकिया लगाकर सिर थोड़ा ऊपर करके बैठें। जिससे आपका छाती वाला हिस्सा खुलता है और आपको अच्छे से सांस आती है।
हालांकि, प्रेग्नेंसी के दौरान अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो रही है, तो आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।