बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन में कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी ने इस बार अपने सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बिना ही चुनाव लड़ा था। लालू प्रसाद यादव केंद्र में मंत्री से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री जैसे पदों पर रहे हैं। हालांकि लालू यादव का बचपन बहुत ही संघर्षों से भरा हुआ था।बचपन में उनके पास पहनने के लिए पूरे कपड़े और खाने के लिए ढंग का भोजन भी नहीं होता था। अपनी आत्मकथा में उन्होंने पूरी आपबीती बताई है।
खाने के लिए नहीं होता था भरपेट भोजन: लालू प्रसाद यादव का बचपन बेहद तंगी में गुजरा। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में लिखा है, ‘बचपन में हमारे पास न तो पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े थे और न ही चावल, दाल, रोटी और सब्जियों के रूप में पूरा भोजन होता था। उन दिनों को याद करता हूं तो आज भी मेरी आंखें भीग जाती हैं, न सिर्फ मेरे अभावों के कारण बल्कि मेरे जैसे अन्य गरीब ग्रामीणों की तकलीफों के कारण भी।’
अपने मवेशी भी चराते थे लालू: पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव खेती करते थे और अपने मवेशी भी चराते थे। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, ‘उनके पास सिर्फ 2 बीघा जमीन और कुछ मवेशी थे। उनकी जिंदगी गाय-गोरू के बीच सिमटी हुई थी। सुबह ही वो मवेशियों को सुदूर घास के मैदान में चराने ले जाते थे।’
पहनने के लिए नहीं थे पूरे कपड़े: लालू के पास बचपन में पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े भी नहीं होते थे। उन्होंने ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में लिखा है ,’जब मैं छोटा था तब मुझे हाथ से बनाई गई बनियान मिली थी। लेकिन न तो मैं रोजाना नहा पाता था और न ही कपड़े धो पाता था, क्योंकि मेरे पास बदलने के लिए कोई और बनियान नहीं थी। मेरी मिट्टी से सनी बारहमासी पोशाक में जुएं तक पड़ गई थीं।’
धान की पुआल का बनाया जाता था बिस्तर: लालू प्रसाद यादव ने अपनी किताब में लिखा है,’ सर्दियों में माई (मां) आंगन में कंडे, गन्ने के सूखे पत्तों और फूस में आग लगाकर हम सबको एक साथ लेकर उसके चारों और बैठ जाती थी। धान के पुआल से हम सबके लिए बिस्तर बनाया जाता था। माई हमारे लिए जूट के बोरे में पुआल, पुराने कपड़े और कपास भरकर कंबल बनाती थी ताकि हमें ठंड ना लगे।’