Baba Ramdev: बाबा रामदेव आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के अलावा वह नशा मुक्ति जैसे अभियान भी चलाते रहते हैं। इसकी नींव उनके स्कूल के दिनों में ही पड़ गई थी। आपको बता दें कि रामदेव मूल रूप से हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के सैद अलीपुर गांव के रहने वाले हैं। बचपन में उनका नाम रामकिशन हुआ करता था।
उन्होंने स्कूली शिक्षा अपने गांव की पाठशाला से ही ग्रहण की थी। वे जिस पाठशाला में पढ़ते थे वहां एक मास्टर साहब बहुत बीड़ी पीते थे। यह बात रामकिशन को पसंद नहीं आती थी। उन्होंने अपने दूसरे साथियों के साथ मिलकर मास्टर साहब की बीड़ी की लत छुड़ाने की लाख कोशिश की। हालांकि तब इसमें सफल नहीं हो पाए थे।
मैं वही शिक्षक हूं… बाबा रामदेव की जीवनी ‘स्वामी रामदेव: एक योगी-एक योद्धा’ में इस घटना का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संदीप देव लिखते हैं कि रामकिशन जब योग गुरु बाबा रामदेव बन गए तो अपने मंच से नशा मुक्ति का आह्वान करते हुए कई बार उस शिक्षक की कहानी लोगों की बताई। एक दिन उनके पास एक पत्र आया। यह पत्र उन्हीं मास्टर साहब का था। इसमें लिखा था, ‘स्वामी जी मैं आपका वही शिक्षक हूं जिसकी बीड़ी पीने की आदत से आप परेशान थे।
तब आप मेरी बीड़ी पीने की लत नहीं छुड़ा पाए थे, लेकिन आपने अपने प्रवचन में इतनी बार मेरा उदाहरण दिया कि लज्जित होकर मैंने बीड़ी पीनी छोड़ दी है। अब कभी इसे हाथ नहीं लगाता। कृपया अब मेरा उदाहरण देना बंद कर दें।’
पिता की लत भी छुड़ा दी थी: आपको बता दें कि स्वामी रामदेव के पिता रामनिवास यादव भी हुक्का और बीड़ी पीते थे। बचपन में ही रामदेव ने अपने पिता की भी यह लत छुड़वा दी थी। स्वामी रामदेव ने अपने पिता से दो टूक कह दिया था कि अगर उन्होंने बीड़ी-हुक्का नहीं छोड़ा तो वे खाना-पीना छोड़ देंगे और किया भी ऐसा ही। मजबूरन उनके पिता को हमेशा के लिए नशे की लत छोड़नी पड़ी थी।
उखाड़ दिये थे भांग के पौधे: रामदेव के गांव सैद अलीपुर में एक बाबा रहते थे और वे भांग का खूब सेवन करते थे। उन्होंने मंदिर प्रांगण में ही भांग के पौधे लगा रखे थे। बाबा रामदेव ने उनकी लत छुड़ाने की ठानी और एक दिन अपने दोस्तों के साथ उनकी भांग घोटने की सिल्ली उठा कर भाग गए। बाद में मंदिर प्रांगण में लगे सारे पौधे भी उखाड़ कर कुएं में फेंक दिये था। इसके बाद बाबा ने मंदिर में कभी पौधा नहीं लगाया।