आज यानी 26 जुलाई को ‘ऑपरेशन विजय’ को 25 साल पूरे हो गए हैं। इस खुशी में देशभर में बड़े ही गर्व के साथ कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2024) मनाया जा रहा है। गौरतलब है कि सन् 1999 में आज ही के दिन भारत-पाक के बीच 60 दिनों चले युद्ध का अंत हुआ था और भारत के वीर सपूतों ने जम्मू-कश्मीर के कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर बाहर निकाला था। तभी से पूरा देश 26 जुलाई के दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में गर्व के साथ मनाता है।

इस गौरवपूर्ण दिन पर आइए पढ़ते हैं, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ जोश से भरी कविताएं-

इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।

धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा मे धार, सिंधु में ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन यौवन अशेष।

भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है।
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जिएंगे तो इसके लिए
मरेंगे तो इसके लिए।

अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।

एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रता भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।