नेहरू-गांधी और बच्चन परिवार की दोस्ती इलाहाबाद के ‘आनंद भवन’ से शुरू हुई थी। बाद में दोनों परिवार दिल्ली आ गए। सियासी आपाधापी के बीच रिश्तों की गर्माहट यहां भी उसी तरह कायम रही। दोनों परिवारों की अगली पीढ़ी ने इसको और मजबूत किया। संजय-राजीव गांधी और अजिताभ-अमिताभ बच्चन ने इस रिश्ते को आगे ले जाने का काम किया। दोनों परिवार एक दूसरे के सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखाई दिए।
सत्ता गई तो बना ली थी दूरी: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव के कहने पर ही अमिताभ राजनीति में आए। हालांकि उन्होंने कुछ सालों के अंदर ही सियासत से तौबा कर ली। बाद के दिनों में दोनों परिवारों के रिश्ते में खटास भी आई और यह साफ-साफ दिखा भी। खासकर इमरजेंसी के बाद, जब जनता पार्टी के नेतृत्व में विपक्षी नेता इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय पर हमलावर थे, उस वक्त बच्चन परिवार ने पूरी तरह दूरी बना ली थी।
तेजी बच्चन ने आने से कर दिया था इनकार: वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में दोनों परिवारों के रिश्ते पर विस्तार से लिखा है। किदवई, संजय गांधी के बेटे वरुण गांधी (Varun Gandhi) के हवाले से दावा करते हैं कि ‘जब इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की सत्ता गई तो ऐसा प्रस्ताव रखा गया कि बच्चन परिवार को एक जनसभा में बुलाया जाए। हालांकि तेजी बच्चन ने यह कहते हुए आने से इंकार कर दिया कि इसका उनके बेटे के फिल्मी करियर पर नकारात्मक असर पड़ेगा।’
एयरपोर्ट पर नहीं आए अमिताभ: संजय गांधी जब कभी मुंबई जाते तो अमिताभ बच्चन खुद उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट तक आते थे, लेकिन जब सत्ता गई तो बच्चन परिवार के व्यवहार में भी बदलाव दिखा। किदवई लिखते हैं कि जिस वक्त इंदिरा सत्ता में नहीं थी, उसी वक्त एक बार संजय गांधी मुंबई पहुंचे। लेकिन एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव करने अमिताभ नहीं आए थे। बच्चन के इस व्यवहार से संजय गांधी आहत हुए थे।
राजीव सियासत में आए तो फिर शुरू हुआ आना-जाना: बकौल किदवई, वरुण गांधी ने साल 2009 में उन्हें खुद बताया था कि बच्चन परिवार ने दोबारा तब भेंट-मुलाकात और गांधी-नेहरू परिवार में आना-जाना शुरू किया जब राजीव गांधी सक्रिय रूप से सियासत में आए।