सीजेआई बीआर गवई ने केंद्र सरकार से जस्टिस सूर्यकांत को अगला प्रधान न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है। वर्तमान सीजेआई गवई के बाद सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण कर सकते हैं।

सीजेआई बीआर गवई 23 नवंबर को रिटायर होंगे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के रूप में 24 मई, 2019 को प्रमोट हुए जस्टिस सूर्यकांत का सीजेआई के रूप में कार्यकाल एक साल 2 महीने से अधिक होगा। वह 9 फरवरी, 2027 को रिटायर होंगे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है।

कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत?

जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। जस्टिस सूर्यकांत पीठ में दो दशक के अनुभव के साथ देश के शीर्ष न्यायिक पद को ग्रहण करेंगे, जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता से संबंधित ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं।

जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी और निर्देश दिया था कि सरकार की ओर से समीक्षा होने तक इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज न की जाए। चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को रेखांकित करने वाले एक आदेश में, उन्होंने निर्वाचन आयोग को बिहार में SIR के बाद मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों का विवरण देने को कहा था।

जस्टिस सूर्यकांत को यह निर्देश देने का श्रेय भी दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं। उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (OROP) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा और सेना में स्थायी कमीशन में समानता की मांग करने वाली सशस्त्र बलों की महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।

जस्टिस सूर्यकांत सात-जजों की उस पीठ में शामिल थे जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था। वह पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने गैरकानूनी निगरानी के आरोपों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों का एक पैनल नियुक्त किया था।

इसके अलावा वह उस पीठ का हिस्सा रहे जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय की पूर्व जज इंदु मल्होत्रा ​​​​की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों के लिए “न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग” की आवश्यकता होती है। (इनपुट – भाषा)

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