सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ओका ने भारत में प्रचलित अंधविश्वासों को लेकर सवाल खड़े किए हैं। जस्टिस ओका ने कहा कि इन सभी धार्मिक प्रथाओं में सुधार की जरूरत है और भारत में प्रचलित अंधविश्वासों से लड़ने के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करने की जरूरत है, लेकिन जो कोई भी धार्मिक सुधारों का प्रस्ताव रखता है, उसे धार्मिक समूहों द्वारा निशाना बनाया जाता है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व जज ओका ने कहा कि यद्यपि हमारा संविधान 76 वर्षों से अस्तित्व में है, फिर भी हमारे समाज ने उन महान लोगों का समर्थन नहीं किया है जिन्होंने वैज्ञानिक सोच और सुधारों के विकास को निरंतर बढ़ावा दिया है। दुर्भाग्यवश, हमारे समाज में, जो कोई भी विज्ञान के आधार पर या विज्ञान की सहायता से धार्मिक प्रथाओं में सुधार का प्रस्ताव रखता है, उसे धार्मिक समूहों के लोगों द्वारा निशाना बनाया जाता है। यह सभी धर्मों पर लागू होता है।

ओका ने कहा कि भारत जैसे देश में, हमें वैज्ञानिक सोच की सख्त जरूरत है क्योंकि हमारे समाज में अंधविश्वास व्याप्त है। हम आस्था और अंधविश्वास के बीच अंतर नहीं समझते। जिस क्षण समाज सुधारक अंधविश्वास के खिलाफ बोलते हैं, इसे इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है मानो वे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त अधिकारों में हस्तक्षेप कर रहे हों।

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भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वासों की ओर इशारा करते हुए जस्टिस ओका ने ज़ोर देकर कहा कि प्रस्तावित सुधारों का अक्सर विरोध किया जाता है, जबकि ये सुधार वास्तव में धर्म के हित में हो सकते हैं। पूर्व न्यायाधीश ने यह भी कहा कि तकनीक का इस्तेमाल करने का मतलब यह नहीं है कि हमने वैज्ञानिक सोच विकसित कर ली है। उन्होंने 2027 में कुंभ मेले के लिए 100 साल पुराने पेड़ों को काटने के प्रस्ताव की ओर इशारा करते हुए, राज्य पर अपने सामूहिक कर्तव्य का पालन करने में विफलता का आरोप लगाया।

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि यदि हमने वैज्ञानिक सोच और सुधारों को विकसित करने के अपने कर्तव्य का पूरी तरह से पालन किया होता, तो हम धार्मिक त्योहारों को मनाने के लिए पशुओं की हत्या और बलि की अनुमति नहीं देते, हम अपने त्योहारों के दौरान लाउडस्पीकरों के अंधाधुंध उपयोग की अनुमति नहीं देते। जस्टिस ओका नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में तारकुंडे मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा आयोजित 16वें वीएम तारकुंडे स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे।

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