Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले का करीब 37 साल बाद संज्ञान लिया है। जिसमें ललितपुर एसपी द्वारा सेशन कोर्ट के जज को धमकी दी गई थी। इस मामले में हाई कोर्ट ने डीजीपी से हलफनामा दाखिल कर यह बताने के लिए कहा है कि उस वक्त उक्त आरोपी अधिकारी पर क्या कार्रवाई की गई थी? क्या वह अभी भी जीवित हैं? बता दें, जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ ने सेशन कोर्ट के फैसले के दो पैराग्राफों का संज्ञान लिया, जहां जज एलएन राय ने जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बीके भोला के खिलाफ उन्हें धमकी देने के लिए कार्रवाई का आदेश दिया था।

सेशन कोर्ट के जज द्वारा ललितपुर जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) के खिलाफ कथित तौर पर गुंडे की तरह व्यवहार करते हुए धमकी देने के लिए कार्रवाई का आदेश देने के लगभग 37 साल बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया है और उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को पुलिस अधिकारी के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई पर एक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

ललितपुर सेशन कोर्ट के 1988 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए (जिसमें हत्या के एक मामले में 28 लोगों को दोषी ठहराया गया था) जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सत्र न्यायालय के फैसले के दो पैराग्राफों का संज्ञान लिया, जहां न्यायाधीश एलएन राय ने जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बीके भोला के खिलाफ उन्हें धमकी देने के लिए कार्रवाई का आदेश दिया था।

पीठ ने टिप्पणी की, “इस अपील में आरोपित निर्णय के पैराग्राफ संख्या 190 और 191 में, राज्य सेवा में एक समय के पुलिस अधीक्षक, बी.के. भोला, जो ललितपुर जिले में तैनात थे, उनके विरुद्ध कुछ बहुत ही गंभीर टिप्पणियां हैं। टिप्पणियां इस हद तक हैं कि ललितपुर के पुलिस अधीक्षक, बी.के. भोला ने ट्रायल जज को यह धमकी देने का दुस्साहस किया कि अगर उन्होंने पुलिस से कुछ रिकॉर्ड, कुछ वायरलेस संदेश मंगवाए, या एसपी को बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश होने के लिए मजबूर किया, तो वे उन्हें घसीटकर थाने ले जाएंगे।”

पीठ ने कहा, “सेशन जज ने बीके भोला के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की थी… लेकिन आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने के लिए इस न्यायालय को संदर्भ नहीं देने में दयालु थे… हालांकि, आरोपित फैसले के पैराग्राफ संख्या 190 और 191 में सेशन जज की टिप्पणियां इतनी निंदनीय हैं कि इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।”

यह भी पढ़ें- ‘…SP को बख्शा नहीं जाएगा’, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी DGP को लगाई फटकार, जानें पूरा मामला

यह कहते हुए कि यह ज्ञात नहीं है कि तत्कालीन एसपी अब तक सेवानिवृत्त हो चुके हैं या जीवित हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने डीजीपी को 9 दिसंबर तक एक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया कि बीके भोला अभी जीवित हैं या नहीं। पीठ ने कहा, “हलफनामे में यह भी दर्शाया जाए कि क्या वह अभी भी सेवा में हैं या पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। यदि वह अभी भी जीवित हैं, तो डीजीपी को उनका पूरा विवरण और आवासीय पता, साथ ही पुलिस स्टेशन भी उपलब्ध कराना होगा। यदि उनकी स्थिति के बारे में कोई अन्य रिपोर्ट है, तो उसका भी खुलासा किया जाए। किसी भी स्थिति में, यह बताया जाए कि विद्वान सेशव जज के निर्देशों के आधार पर बीके भोला के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।”

इस बात पर गौर करते हुए कि विवादित फैसले में अन्य अधिकारियों के नाम भी हैं, हाई कोर्ट ने कहा कि “वे विविध अधिकारी हैं, और उनके आचरण की जांच करना एक और दिन का मामला होगा, क्योंकि जिला पुलिस अधीक्षक को न्यायाधीश ने गुंडे की तरह व्यवहार करते हुए पाया था।”

यह भी पढ़ें- ‘नौ साल की सेवा के बाद नौकरी…’, हाई कोर्ट ने 32,000 शिक्षकों की नियुक्तियों को रद्द करने के आदेश को पलटा