Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मंदिर का भगवान का है। इस धन का इस्तेमाल सहकारी बैंकों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता है। सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ केरल के कुछ सहकारी बैंकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तिरुनेल्ली मंदिर देवस्वोम में जमा राशि वापस करने के केरल हाई कोर्ट के निर्देश को चुनौती दी गई थी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि केरल हाई कोर्ट के निर्देश में क्या गलत है। सीजेआई कांत ने पूछा, “आप मंदिर के धन का इस्तेमाल बैंक को बचाने के लिए करना चाहते हैं? यह निर्देश देने में क्या गलत है कि मंदिर का धन, एक सहकारी बैंक में रखने के बजाय, जो बड़ी मुश्किल से सांस ले रहा है, एक स्वस्थ राष्ट्रीयकृत बैंक में जाना चाहिए जो अधिकतम ब्याज दे सके? “

सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, “मंदिर का धन, सबसे पहले भगवान का है। इसलिए, इस धन को केवल मंदिर के हितों के लिए ही बचाया, संरक्षित और उपयोग किया जाना चाहिए। यह किसी सहकारी बैंक के लिए आय या अस्तित्व का स्रोत नहीं बन सकता। ” याचिकाकर्ताओं (बैंकों) के वकील मनु कृष्णन जी ने कहा कि दो महीने के भीतर जमा राशि वापस करने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा जारी “अचानक” निर्देश से कठिनाइयां पैदा हो रही हैं।

सीजेआई ने कहा, “आपको लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता स्थापित करनी चाहिए। यदि आप ग्राहकों और जमाओं को आकर्षित करने में असमर्थ हैं, तो यह आपकी समस्या है।”

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जस्चिस बागची ने आगे कहा कि बैंकों को जमा राशि की परिपक्वता पर तुरंत राशि जारी करनी थी। वकील ने जवाब दिया कि बंद करने का कोई अनुरोध नहीं किया गया था और ग्राहक की ओर से कोई शिकायत नहीं थी। वकील ने कहा, “हम उनकी ज़रूरतों के अनुसार उन्हें सेवाएं प्रदान करते रहे हैं। हमने अनुरोध के अनुसार उनके परिसर में एक विशेष शाखा भी शुरू की है। वे लगातार एफडी का नवीनीकरण करते रहे हैं। अब, अचानक…।” उन्होंने स्पष्ट किया कि बैंक जमा राशि बंद करने के विरोध में नहीं थे; लेकिन अचानक वापसी का निर्देश देने से परेशानी होगी।

पीठ ने अंततः याचिकाओं को खारिज कर दिया तथा याचिकाकर्ताओं को समय विस्तार के लिए उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता दे दी। मनथनावाडी को-ऑपरेटिव अर्बन सोसाइटी लिमिटेड और थिरुनेली सर्विस कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड ने अगस्त में हाई कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा पारित फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थीं । थिरुनेली देवास्वोम ने सहकारी बैंकों द्वारा बार-बार अनुरोध के बावजूद सावधि जमा राशि वापस करने से इनकार करने से व्यथित होकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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