सुप्रीम कोर्ट ने SIR की प्रक्रिया पूरे देश में कराने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर 11 नवंबर को सुनवाई करने पर सहमति जताई।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने पश्चिम बंगाल सरकार की नई अर्जी पर 11 नवंबर को सुनवाई करने का फैसला किया है। यह याचिका सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल के जरिए दायर की गई है, जिसमें राज्य ने SIR  प्रक्रिया को चुनौती दी है।

इस मामले में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से वकील प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने कहा कि यह मुद्दा देश के लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा है। उनका कहना है कि चुनाव आयोग आधार कार्ड को मान्यता नहीं दे रहा, जिससे चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।

प्रशांत भूषण ने यह भी बताया कि SIR प्रक्रिया को अब अन्य राज्यों में भी बढ़ाया जा रहा है, जिससे चुनाव आयोग खुद लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रहा है। उन्होंने कहा, “यह देश के लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा सबसे अहम मामला है।”

बिहार SIR पर पहले से चल रही सुनवाई

पीठ ने कहा कि हालांकि 11 नवंबर से कई महत्वपूर्ण मामले लिस्ट हैं, फिर भी वह SIR मामलों की सुनवाई के लिए अन्य मामलों की सुनवाई को समायोजित करने का प्रयास करेगी। भूषण ने कहा कि मामले की तत्काल सुनवाई इसलिए आवश्यक है क्योंकि विभिन्न राज्यों में एसआईआर प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

शीर्ष अदालत बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण करने के निर्वाचन आयोग के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पहले से ही सुनवाई कर रही है। निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के SIR की कवायद को ‘सटीक’ बताते हुए सुप्रीम से 16 अक्टूबर को कहा था कि याचिकाकर्ता राजनीतिक दल और गैर सरकारी संगठन इस प्रक्रिया को केवल बदनाम करने के लिए झूठे आरोप लगाकर संतुष्ट हैं।

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा था कि अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद से नाम हटाने के खिलाफ किसी मतदाता ने एक भी अपील दायर नहीं की है। उसने याचिकाकर्ताओं के इस आरोप का खंडन किया था कि महीनों तक चली SIR प्रक्रिया के बाद तैयार की गई राज्य की अंतिम मतदाता सूची में “मुसलमानों को अनुपातहीन तरीके से बाहर” किया गया।

डीएमके ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

डीएमके (DMK) ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें SIR को ‘एक तरह का NRC’ बताया गया है। डीएमके ने चुनाव आयोग की 27 अक्टूबर 2025 की SIR संबंधी अधिसूचना को संविधान के खिलाफ बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है। (इनपुट – पीटीआई)

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