Surrogacy Act: सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 को लेकर गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि कानून के लागू होने से पहले सरोगेसी प्रक्रिया शुरू करने वाले पति-पत्नी की उम्र की सीमा लागू नहीं होगी। यह अधिनियम 25 जनवरी 2022 को प्रभावी हुआ था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने साफ किया है कि सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के तहत उम्र वाला बैन उन पति-पत्नियों पर लागू नहीं होगा, जिन्होंने अधिनियम के लागू होने से पहले सरोगेसी प्रक्रिया शुरू की थी।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने तीन दंपतियों द्वारा दायर याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि आयु सीमा पूर्वव्यापी प्रभाव यानी नियम लागू होने की तिथि से पहले के समय से लागू नहीं होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर इच्छुक दंपती सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के लागू होने से पहले भ्रूण निर्माण और युग्मक निकालने के बाद उसे फ्रीज करने की अवस्था में थे और भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भाशय में स्थानांतरित करने की दहलीज पर थे, तो आयु सीमा लागू नहीं होगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि इच्छुक दम्पति ने अधिनियम के लागू होने से पहले, अर्थात 25 जनवरी, 2022 से पहले सरोगेसी प्रक्रिया शुरू कर दी थी, और वे भ्रूण के निर्माण और युग्मक (gametes) यानी शुक्राणु और अंडाणु के निकालने के बाद उसे फ्रीज करने के चरण में थे तथा भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भाशय में स्थानांतरित करने की दहलीज पर थे, तो उस स्थिति में आयु प्रतिबंध लागू नहीं होगा।
पीठ ने कहा कि 25 जनवरी, 2022 से पहले सरोगेसी का लाभ उठाने के इच्छुक दंपतियों पर आयु प्रतिबंध के संबंध में कोई बाध्यकारी कानून नहीं था। पीठ ने कहा कि इसलिए, अधिनियम के तहत वैधानिक आयु सीमा से ऊपर के दंपतियों के लिए सरोगेसी तक पहुंच का अधिकार या सरोगेसी के लिए उनका हक उनकी आयु पर सशर्त नहीं था और प्रचलित कानून के तहत दंपतियों को यह अधिकार स्वतंत्र रूप से उपलब्ध था।
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह अधिनियम के तहत आयु सीमा निर्धारित करने या इसकी वैधता पर निर्णय देने में संसद की बुद्धिमत्ता पर सवाल नहीं उठा रही है। पीठ ने कहा कि उसके समक्ष मामले उन दंपतियों तक सीमित हैं, जिन्होंने अधिनियम के लागू होने से पहले सरोगेसी प्रक्रिया शुरू की थी, और वह अपनी टिप्पणियां भी उन्हीं तक सीमित रखेगी।
कोर्ट ने 29 जुलाई को इस मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था कि क्या सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के 25 जनवरी, 2022 को लागू होने से पहले भ्रूण को फ्रीज करवाने वाले दंपत्ति, अधिनियम के तहत निर्धारित ऊपरी आयु सीमा पार करने के बावजूद सरोगेसी करवा सकते हैं। कानून के अनुसार, महिला की आयु 23 से 50 वर्ष के बीच और पुरुष की आयु 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि कानून उन मामलों पर चुप है जहां दम्पतियों ने अधिनियम के लागू होने से पहले ही सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा केवल ऐसे दम्पतियों तक ही सीमित है और उन दम्पतियों तक सीमित नहीं है जिन्होंने अधिनियम के लागू होने के बाद यह प्रक्रिया शुरू की थी।
पीठ ने इच्छुक माता-पिता पर ऊपरी आयु सीमा लागू करने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया, जब सरोगेट माँ, न कि इच्छुक माँ, बच्चे को जन्म देती है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने टिप्पणी की कि सरोगेट के लिए आयु सीमा उचित हो सकती है, लेकिन यही तर्क इच्छुक माता-पिता पर लागू नहीं हो सकता।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने याचिकाओं का विरोध किया
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने इन याचिकाओं का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि आयु सीमा जैविक कारणों और युग्मकों की आनुवंशिक गुणवत्ता से संबंधित चिंताओं पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा कि बच्चे का कल्याण भी एक कारक है, क्योंकि वृद्ध माता-पिता दीर्घकालिक देखभाल प्रदान करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। भाटी ने एक याचिका का हवाला दिया जिसमें इच्छुक पिता 64 वर्ष के और माता 58 वर्ष की थीं।
हालांकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारत में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है और प्राकृतिक गर्भाधान या गोद लेने के लिए कोई आयु सीमा नहीं है। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य व्यावसायिक सरोगेसी पर अंकुश लगाना है, न कि वास्तविक दम्पतियों को इस प्रक्रिया से बच्चे पैदा करने से रोकना।
भाटी ने यह भी तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 53 के तहत, इच्छुक दंपत्ति के कानूनी अधिकार तभी उत्पन्न होते हैं जब भ्रूण गर्भाशय में प्रत्यारोपित हो जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि अक्सर विभिन्न कारणों से कई भ्रूणों को फ्रीज कर दिया जाता है और सभी का उपयोग सरोगेसी के लिए नहीं किया जाता है।
यह भी पढ़ें- ‘व्हाट्सएप ग्रुप का मेंबर बनने से आरोपी नहीं बनते…’, उमर खालिद के वकील ने क्या दलील दी?
पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दत्तक माता-पिता के लिए ऊपरी आयु सीमा के अभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि वृद्ध माता-पिता शिशु को गोद ले सकते हैं, तो यह स्पष्ट नहीं है कि वे सरोगेसी के माध्यम से बच्चा क्यों नहीं प्राप्त कर सकते।
वर्तमान याचिकाएं सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम, 2021, दोनों के प्रावधानों को चुनौती देने वाले एक बड़े समूह का हिस्सा हैं , जिनमें आयु और वैवाहिक स्थिति संबंधी प्रतिबंध, 35 से 45 वर्ष की विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं के अलावा अन्य अविवाहित महिलाओं का बहिष्कार, और जीवित बच्चे वाले दम्पतियों द्वारा सरोगेसी का लाभ उठाने पर प्रतिबंध शामिल हैं।
यह भी पढ़ें- बिहार में SIR की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, कहा- सुधार की थी जरूरत