बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस हफ्ते की शुरुआत में 2012 में सांगली में हुई एक महिला के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में तीन लोगों को दी गई सजा रद्द कर दी। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष (सरकार की ओर से) यह ठीक से साबित नहीं कर पाया कि अपराध कैसे और क्यों हुआ। खासकर अपराध के मकसद और घटनाओं की पूरी कड़ी को साबित करने में कमी रही।

जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस श्याम सी. चंदक की पीठ ने 24 दिसंबर को इस मामले में फैसला सुनाया। यह फैसला उन तीन आरोपियों की अपील पर आया, जिन्होंने जुलाई 2019 में सांगली की सत्र अदालत द्वारा सुनाए गए फैसले को चुनौती दी थी।

सत्र अदालत ने उन्हें हत्या, सामूहिक बलात्कार, सबूत मिटाने और साझा इरादे से अपराध करने के आरोपों में दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा दी थी। लेकिन हाई कोर्ट ने सबूतों को अपर्याप्त मानते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता का सड़ा हुआ शव अक्टूबर 2012 में हाथ बंधे हुए मिला था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण गला घोंटना बताया गया और योनि में घाव के निशान भी मिले। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, 19 वर्षीय पीड़िता 12 अक्टूबर को कपड़े की दुकान पर काम करने के लिए घर से निकली थी, जहां वह काम करती थी, लेकिन उसके बाद लापता हो गई।

जांच में पता चला कि पीड़िता का मुख्य आरोपी के साथ प्रेम संबंध था और वह कथित तौर पर उस पर शादी करने का दबाव डाल रही थी, लेकिन उसके पिता को मुख्य आरोपी के साथ उसकी दोस्ती पसंद नहीं थी। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपी उसे एक जगह ले गया, जहां उसने कथित तौर पर उसे शराब पीने के लिए मजबूर किया। इसके बाद उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी गई और शव को कुएं में फेंक दिया गया।

पीठ ने टिप्पणी की, “कानून के स्थापित सिद्धांतों के आलोक में रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक जांच और पुनर्मूल्यांकन करने पर, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अभियोजन पक्ष अपराध के ‘उद्देश्य’ और ‘अंतिम बार साथ देखे जाने’ के सिद्धांत सहित परिस्थितियों की तथ्यों को साबित करने में विफल रहा है, जिससे केवल यही परिकल्पना सामने आती है कि अपीलकर्ताओं के अलावा किसी अन्य व्यक्ति ने पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं किया, उसकी हत्या नहीं की और न ही साक्ष्यों को गायब किया।”

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कोर्ट में आगे कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा जिन परिस्थितियों का हवाला दिया गया है, जो अपीलकर्ताओं के अपराध की ओर इशारा करने वाली परिस्थितियों की कड़ी में एक अहम कड़ी हैं, उनकी संभावना को लेकर उचित संदेह बना हुआ है। इसके विपरीत, रिकॉर्ड में मौजूद तथ्यों से हमें यह पता चलता है कि इस मामले में पुलिस द्वारा गवाहों को मनगढ़ंत कहानी बनाने के लिए खड़ा करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

हाई कोर्ट ने अपीलें स्वीकार करते हुए कहा कि इसलिए, अभियोजन पक्ष के बयान की सत्यता पर उचित संदेह है। अतः संदेह का लाभ अपीलकर्ताओं को मिलना चाहिए। परिणामस्वरूप, सभी अपीलें स्वीकार किए जाने योग्य हैं।

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