ओडिशा हाई कोर्ट ने एक छात्र के द्वारा फीस भरने में देरी किए जाने के बाद उस पर हुई कार्रवाई के मामले में बाइबिल का हवाला दिया है। अदालत ने ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को छात्र के एडमिशन को नियमित करने और उसके रिजल्ट को प्रकाशित करने का निर्देश दिया है।

छात्र का रिजल्ट इसलिए रोक दिया था क्योंकि वह सेमेस्टर फीस जमा नहीं कर पाया था।

जस्टिस दीक्षित कृष्ण श्रीपाद ने छात्र को राहत देते हुए बाइबिल का हवाला दिया। जस्टिस ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है, इसलिए उसके प्रति नरमी बरतनी चाहिए।’ जस्टिस दीक्षित ने कहा, ‘बाइबिल कहती है कि (Psalm 32:5) ईमानदारी से माफी मांगने से अपराधबोध कम हो जाता है।’

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क्या है यह पूरा मामला?

छात्र अपनी फीस जमा नहीं कर पाया था इसलिए उसे छठे सेमेस्टर का एग्जाम देने से रोक दिया गया था। छात्र की ओर से कहा गया था कि फीस जमा करने में यह देरी पैसे की कमी और मेडिकल परेशानियों की वजह से हुई।

इसके लिए छात्र ने बिना शर्त माफी मांगी थी। इस मामले में जब हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई तो अदालत ने छात्र को इस बात की इजाजत दी कि वह शुल्क और जुर्माने को जमा कर दे। अदालत ने उसे एग्जाम में बैठने की अनुमति भी दी। इसके बाद छात्र ने परीक्षा दी।

छात्र के वकील की ओर से अदालत के सामने प्रार्थना की गई थी कि क्योंकि अब वह परीक्षा दे चुका है इसलिए यूनिवर्सिटी में उसके दाखिले को नियमित कर दिया जाए और उसका रिजल्ट भी प्रकाशित किया जाए जिससे वह आगे कोई और कोर्स कर सके।

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यूनिवर्सिटी की ओर से पेश हुए वकील ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि केवल अंतरिम आदेश होने के कारण छात्र के दाखिले को नियमित करने की इजाजत देना एक गलत मिसाल कायम करेगा। इस पर जस्टिस दीक्षित कृष्ण श्रीपाद ने कहा कि छात्र ने अपनी गलती स्वीकार की है और सच्चे मन से माफी मांगी है, इसलिए उसके साथ नरमी बरती जानी चाहिए।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में कोर्ट छात्र को जो भी राहत दे रही है उसे मिसाल कायम करने वाले कानून के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

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