Jharkhand High Court: झारखंड हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अधिवक्ता महेश तिवारी के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज किया है। यह मामला इसलिए दर्ज किया गया है क्योंकि अधिवक्ता महेश तिवारी ने ओपन कोर्ट में जज राजेश कुमार से तीखी बहस की थी। यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीम की गई सुनवाई का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

16 अक्टूबर को जस्टिस राजेश कुमार को संबोधित करते हुए वकील तिवारी ने कहा, “मैं अपने तरीके से बहस कर सकता हूँ, आपके तरीके से नहीं जैसा आप कहते हैं। कृपया ध्यान रखें… किसी भी वकील को अपमानित करने की कोशिश न करें, मैं आपको बता रहा हूँ। महोदय, कृपया किसी व्यक्ति को अपमानित करने की कोशिश न करें। न्यायपालिका के साथ देश जल रहा है। ये मेरे शब्द हैं। किसी भी वकील को अपमानित करने की कोशिश न करें। आप बहुत जानते हैं, आप जज होंगे; हम लोग नहीं जानते हैं हम लोग वकील हैं। मैं अपने तरीके से बहस करूंगा। लीमिट क्रास न करें। प्लीट लीमिट क्रास ने करें। मैं पिछले 40 सालों से प्रैक्टिस ही कर रहा हूं।”

एक दिन बाद चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान , जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद , जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय , जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस राजेश शंकर की पूर्ण पीठ ने ‘कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम महेश तिवारी’ शीर्षक से एक आपराधिक अवमानना ​​मामले की सुनवाई की। मामले में पारित आदेश की प्रति तत्काल उपलब्ध नहीं हो पाई। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को निर्धारित है।

जस्टिस कुमार की एकल पीठ के समक्ष कथित अवमानना ​​गुरुवार को हुई, जब न्यायालय ने एक महिला के मामले की सुनवाई की थी, जिसमें उसने बिजली कनेक्शन काट दिए जाने और बिजली बोर्ड द्वारा 1.30 लाख रुपये से अधिक की राशि की मांग की थी।

विधवा याचिकाकर्ता पुष्पा कुमारी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता तिवारी ने किया। संक्षिप्त सुनवाई के बाद, न्यायालय ने 50,000 रुपये जमा करने की शर्त पर उनका कनेक्शन बहाल करने का आदेश पारित किया।

इससे पहले, जब तिवारी ने आग्रह किया था कि उनकी दुर्दशा और आगामी दिवाली को देखते हुए उन्हें बिजली बहाल करने के लिए केवल 10,000-15,000 रुपये जमा करने की अनुमति दी जाए। इस पर जस्टिस कुमार ने कहा, “नहीं, उतना मैं नहीं। उतनी दुर्दशा नहीं। हम न्याय करने नहीं बैठते हैं। मुझे कानून के अनुसार चलना होगा। न्याय कानून के अनुसार ही होना चाहिए। मैं न्यायालय नहीं हूँ। मैं कानून का न्यायालय हूँ। वैकल्पिक उपाय और बहुत सी चीजें हैं। मैं उचित राशि जमा करने पर ही क्षमादान दे सकता हूँ।”

बिल राशि से संबंधित दलीलों के दौरान, अधिवक्ता तिवारी ने कहा कि अधिकतम 15,000 रुपये की मांग होनी चाहिए थी क्योंकि मासिक बिल 200 रुपये से कम था। उन्होंने आगे कहा कि बोर्ड 350-450 रुपये की मांग कर रहा है।

वकील द्वारा बताई गई राशि पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए जस्टिस कुमार ने कहा कि मामले की जांच का आदेश दिया जा सकता है। जज ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा कि खोपड़ी खाली करके नहीं बैठे हैं तिवारी जी। तिवारी जी, खोपड़ी खाली करके नहीं बैठे हैं, खोपड़ी में है कुछ…।

अपनी दलीलें जारी रखते हुए, अधिवक्ता तिवारी ने मानवीय आधार पर हस्तक्षेप की माँग की और एक निश्चित लेकिन कम राशि जमा करने पर सहमति जताई। हालांकि, न्यायालय ने राशि से संबंधित दलीलों के अभाव का हवाला दिया और दोहराया कि मांग की गई राशि का 50 प्रतिशत पहले जमा करना होगा।

पीठ ने कहा, ” मैं हवा में कोई आदेश पारित नहीं कर सकता… हवा में नहीं करुंगा। कुछ आधार तो होना ही चाहिए। आप आधार नहीं दे रहे हैं। 50% को मिसाल के तौर पर आधार घोषित किया गया है। हम उसका पालन करेंगे।”

तिवारी ने जवाब दिया कि 30,000 रुपये अतिरिक्त मांगे जा रहे हैं और कोर्ट एक लाख रुपये में से आधा जमा करने का आदेश दे सकती है।

उन्होंने कहा कि 50,000 रुपये हम कहीं से भी जुटा लेंगे। ” इस पर अदालत ने कहा, “मैनेज? अब आप ऐसी बात मत बोलिए। ये दया का दरबार नहीं है। मैं दया का दरबार नहीं हूँ।” तिवारी ने तब सहमति जताई कि याचिकाकर्ता 50,000 रुपये जमा करेगा। इसके बाद कोर्ट ने राशि के भुगतान पर बिजली बहाल करने का आदेश दिया।

हालांकि, जज की स्पष्ट टिप्पणियों को छोड़कर सुनवाई सामान्य रूप से संपन्न हुई प्रतीत हुई, लेकिन बाद में गुस्सा तब भड़क गया जब न्यायालय बेदखली के एक अन्य मामले में एक अलग वकील की सुनवाई कर रहा था। न्यायाधीश ने दूसरे वकील को संबोधित करते हुए कुछ टिप्पणियां कीं, लेकिन यह स्पष्ट प्रतीत हुआ कि वह पिछले मामले का उल्लेख कर रहे थे और उनकी टिप्पणी तिवारी को लेकर थी।

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कोर्ट ने कहा कि आप खड़े होकर सिर्फ यह दलील नहीं दे सकते कि ‘वह विधवा है, बेसहारा है…’ वह भी दलीलों के अभाव में और यह भी कह सकते हैं कि अगर हम स्टे नहीं देंगे तो कोर्ट द्वारा अन्याय होगा।’ यह कैसी बहस चल रही है। इस स्तर पर, कोर्ट ने अपना ध्यान राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष की ओर स्थानांतरित कर दिया। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, ” क्या आपके वकील इस तरह से मामले पर बहस करेंगे? “

जज की बात सुनकर तिवारी, जो अभी भी अदालत कक्ष में मौजूद थे, आगे की ओर आए और जज से पूछा कि क्या वह उन्हीं की बात कर रहे हैं। जस्टिस कुमार ने हाँ में जवाब दिया। तिवारी ने तब अदालत से कहा कि वह अपने तरीके से बहस करेंगे। न्यायाधीश ने जवाब दिया कि वकील यह नहीं कह सकते कि अदालत अन्याय कर रही है। तिवारी ने कहा कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा है। इसके बाद अन्य वकील स्थिति को संभालने के लिए खड़े हो गए। इसके तुरंत बाद सुनवाई का प्रसारण रोक दिया गया। इस घटना का वीडियो बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

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