Kerala High Court: कोई मुस्लिम पति अपनी पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी कर लेता है तो वह यह तर्क नहीं दे सकता कि उसके पास अपनी पहली पत्नी का भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं है। केरल हाई कोर्ट ने यह बात एक मामले की सुनवाई के दौरान कही।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कौसर एडप्पागथ पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिकाओं पर फैसला सुना रहे थे, जिसमें पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें पहली पत्नी को भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था, तथा बेटे के खिलाफ भरण-पोषण की याचिका को खारिज कर दिया गया था।

पति के वकील ने दलील दी कि उसका क्लाइंट बेरोज़गार है और उसके पास अपनी पहली पत्नी, जो ब्यूटी पार्लर चलाती है और उसी से अपनी आजीविका चलाती है। उसको भरण-पोषण देने का कोई साधन नहीं है। यह भी दलील दी गई कि पत्नी ने 2015 में बिना किसी पर्याप्त कारण के पति का साथ छोड़ दिया था और वह सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है।

आगे यह भी कहा गया कि वह पहली पत्नी को भरण-पोषण नहीं दे सकता, क्योंकि उसे दूसरी पत्नी का भी भरण-पोषण करना है। कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम पति को एक से ज़्यादा पत्नियां रखने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि मुस्लिम कानून के तहत एक विवाह नियम है और बहुविवाह अपवाद है।

मुस्लिम लॉ के तहत पुरुषों के लिए बहुविवाह की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जाती है, वह भी इस सख्त आदेश के साथ कि सभी पत्नियों के साथ समान और न्यायसंगत व्यवहार किया जाना चाहिए। सह-पत्नियों के बीच न्याय करने की क्षमता, प्राचीन शरिया कानून और भारत के मुस्लिम पर्सनल लॉ, दोनों के तहत, बहुविवाह के लिए एक पूर्व शर्त है।

कोर्ट ने कहा कि कुरान की आयत (IV:3) के अनुसार मुस्लिम कानून में बहुविवाह की नींव यह है कि पति को सभी पत्नियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने में सक्षम होना चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सभी पत्नियों के साथ न्याय करना’ शब्द का तात्पर्य न केवल प्रेम और स्नेह में समानता है, बल्कि भरण-पोषण में भी समानता है। इसलिए, एक मुस्लिम पति, जिसने अपनी पहली शादी के रहते दूसरी शादी कर ली है, यह तर्क नहीं दे सकता कि उसके पास अपनी पहली पत्नी का भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं है।

कोर्ट ने यह माना कि यह तथ्य कि पति की दूसरी पत्नी है और वह उसका भरण-पोषण करने के लिए उत्तरदायी है, पहली पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करने या उसके लिए निर्धारित भरण-पोषण की राशि को कम करने का कारक नहीं हो सकता। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि बेटा पत्नी को भरण-पोषण देता है, इसलिए पति के खिलाफ भरण-पोषण का दावा कानूनी रूप से टिकने योग्य नहीं है।

कोर्ट ने दोहराया है कि बीएनएसएस की धारा 144 के तहत पति से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार बीएनएसएस की धारा 144(1)(डी) के तहत उसके बेटे या बेटी द्वारा उसे भरण-पोषण देने के दायित्व से स्वतंत्र है। कोर्ट ने आगे कहा कि यह तथ्य कि किसी महिला के बेटे या बेटी के पास पर्याप्त साधन हैं और वह उसे भरण-पोषण प्रदान करता है, पति को बीएनएसएस की धारा 144(1)(ए) (सीआरपीसी की धारा 125(1)(ए)) के तहत अपनी पत्नी की ज़रूरत पड़ने पर उसे सहायता देने के स्वतंत्र वैधानिक दायित्व से मुक्त नहीं करता।

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न्यायालय ने प्रतिवादी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पत्नी ने बिना किसी पर्याप्त कारण के उसका साथ छोड़ दिया, तथा कहा कि यदि पत्नी का अलग रहने का निर्णय वैध आधार पर आधारित है।

हसीना बनाम सुहैब , (2025 (1) केएचसी 543) के निर्णय पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि, एक मुस्लिम पत्नी जो अपने पति के दूसरे विवाह करने पर उससे अलग रहती है, वह सीआरपीसी/बीएनएसएस के तहत भरण-पोषण के अपने वैधानिक अधिकार का दावा करने से वंचित नहीं है। कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पत्नी पति से भरण-पोषण पाने की हकदार है, जबकि पति पुत्र से भरण-पोषण पाने का हकदार नहीं है।

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