मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भगवद् गीता ‘मोरल साइंस’ यानी नैतिक विज्ञान है और पूर्ण रूप से धार्मिक पुस्तक होने के बजाय यह ‘भारतीय सभ्यता’ का हिस्सा है।
जस्टिस जी आर स्वामीनाथन, गृह मंत्रालय के फॉरेन कॉंट्रिब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (एफसीआरए) के आदेश के खिलाफ अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें पूर्व अनुमति के बिना फॉरेन कांट्रिब्यूशन फंड के आधार पर और संगठन के धार्मिक स्वरूप के कारण ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन को रिजेक्ट कर दिया था।
‘याचिकाकर्ता धार्मिक संस्था’
कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता भगवद् गीता में दिए गए संदेश का प्रचार-प्रसार कर रहा है, इसलिए कोर्ट ने फैसला किया है कि याचिकाकर्ता एक धार्मिक संस्था है। साथ ही भगवद् गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक मोरल साइंस हैं।”
कोर्ट ने आगे टिप्पणी की, “जो भगवद् गीता पर लागू होता है वही वेदांत पर भी लागू होगा। यह हमारे पूर्वजों की विकसित फिलोसफी को बताता है। योग को धर्म के नजरिए से देखना ही घोर अन्याय होगा। यह एक सार्वभौमिक अवधारणा (यूनिवर्सल कॉन्सेप्ट) है।”
‘अथॉरिटी ने मानक पूरे नहीं किए’
आगे कहा गया कि आवेदक(याचिककर्ता) को एक ‘धार्मिक संस्था प्रतीत होने की तर्ज पर, अथॉरिटी ने प्रोविजन में तय मानकों को पूरा नहीं किया।
अदालत ने इस बात पर गौर किया कि ट्रस्ट ने 2021 में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन अथॉरिटी द्वारा प्रक्रिया अक्टूबर 2024 में ही शुरू हुई। कोर्ट ने कहा, “अधिकारियों से निष्पक्ष व्यवहार की उम्मीद की जाती है। यह सुशासन का एक मूलभूत सिद्धांत है।”
क्या था मामला?
अर्शा विद्या पंरपरा ट्रस्ट ने रजिस्ट्रेशन के आवेदन को रद्द करने के एफसीआरए के आदेश के खिलाफ कोर्ट से दखल देने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की।
एफसीआरए ने ट्रस्ट के आवेदन को दो आधार पर खारिज कर दिया था, पहला कि याचिकाकर्ता ने बिना अनुमति के फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन फंड हासिल किए और फॉरेन कॉन्टिब्यूशन में फंड को दान के रूप में किसी अन्य संस्था को ट्रांसफर किया गया। साथ ही अथॉरिटी ने दूसरा आधार संस्था के धार्मिक होना माना था।
ट्रस्ट से कोर्ट ने आदेश से अलग संबंधित रिकॉर्ड मांगे और अथॉरिटी को एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन स्वीकृति देने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने न्याय के हित में कोर्ट द्वारा उचित समझी जाने वाली किसी अन्य राहत की भी मांग की है।
कोर्ट ने क्या दिया फैसला?
कोर्ट ने कहा कि न्याय के सिद्धांतों को घोर उल्लंघन किया गया है। आदेश असंगत के दोष से ग्रस्त है। ऐसे में याचिकाकर्ता इस कोर्ट से विवेकाधीन राहत पाने का हकदार है।
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह विवादित आदेश खारिज किया जाता है और मामला एफएसीए को वापस भेजा जाता है। कोर्ट ने आदेश दिया, “ट्रस्ट को एक नया नोटिस जारी किया जाए जिसमें उनसे पूछा जाए कि क्या एफसी फंड का ट्रांसफर किया गया था, लेकिन ऐसा नोटिस जरूरी तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। यह अस्पष्ट नहीं हो सकता।”
