CJI Surya Kant: सीजेआई सूर्यकांत ने न्यायपालिका से कहा है कि वह जरूरत से ज्यादा कठिन कानूनी भाषा का इस्तेमाल कम करे, क्योंकि इससे आम लोगों और न्याय के बीच दूरी बनती है। उन्होंने कहा कि अदालत के फैसले साफ और आसान भाषा में लिखे जाने चाहिए, ताकि लोग उन्हें समझ सकें। वह शनिवार को वेस्ट जोन रीजनल कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि अगर न्याय साफ और समझने योग्य न हो, तो जिन लोगों के लिए वह है, उनके लिए उसका महत्व खत्म हो सकता है। उन्होंने बताया कि अदालत के फैसले सिर्फ अकादमिक चर्चा नहीं होते, बल्कि वे लोगों के अधिकार और जिम्मेदारियाँ तय करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब फैसलों की भाषा और ढांचा बहुत अलग-अलग होता है, तो आम लोगों के लिए उनका मतलब समझना मुश्किल हो जाता है।
जटिल कानूनी भाषा से होने वाली परेशानी को समझाते हुए सीजेआई ने उन लोगों की हालत बताई, जिन्हें केस जीतने के बाद भी यह समझ नहीं आ पाया कि उन्हें असल में क्या राहत मिली है। उन्होंने कहा कि यह भ्रम इसलिए हुआ क्योंकि आदेशों में इस्तेमाल की गई भाषा बहुत ज्यादा तकनीकी, अस्पष्ट और घुमावदार थी, जिसे समझना आम लोगों के लिए लगभग नामुमकिन था।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायिक लेखन में एकरूपता का मतलब है कि फैसले साफ, समझने में आसान और भरोसेमंद हों। उन्होंने बताया कि इसके लिए ऐसा तरीका अपनाना चाहिए जिसमें कम शब्दों में स्पष्ट तर्क हों और आदेश से जुड़े जरूरी निर्देश साफ-साफ लिखे हों।
“एकीकृत न्यायिक नीति” की बात करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तकनीक का असली फायदा इसकी जटिलता में नहीं, बल्कि इस बात में है कि आम आदमी आसानी से समझ सके कि उसके मामले का फैसला क्या हुआ और वह न्यायपूर्ण है। उन्होंने बताया कि नए उपकरण अब ऐसे काम कर सकते हैं जो न्याय को समझने में मदद करें, जैसे फैसलों को आसान भाषा में लिखना और उन्हें अलग-अलग भाषाओं में तुरंत अनुवाद करना, ताकि ज्यादा लोग उन्हें समझ सकें।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ भाषा ही नहीं, फैसलों में भी स्पष्टता होनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि एक जैसे कानूनी सवालों वाले मामलों को एक साथ रखा जाए, ताकि फैसले समान हों। उन्होंने एक पुराने मामले का उदाहरण दिया, जिसमें उच्च न्यायालय की तीन अलग-अलग पीठों ने भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समान अपीलों में अलग-अलग निर्णय दिए थे, जिससे याचिकाकर्ताओं को अपने अधिकारों को लेकर भ्रम हुआ।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका को जिम्मेदार होना चाहिए। उन्होंने बताया कि हाल ही में उन्होंने एक आदेश दिया है, जिसमें कहा गया है कि जमानत, बंदी, बेदखली और विध्वंस जैसे तुरंत निर्णय वाले मामलों को खामियां दूर होने के दो दिन के अंदर ही सूचीबद्ध किया जाए। उन्होंने कहा कि इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि तात्कालिक फैसले केवल मौके पर निर्णय लेने की बजाय व्यवस्थित तरीके से लिए जाएं।
अपने भाषण के अंत में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तकनीक सिर्फ एक साधन है, लेकिन तरीका हमेशा मानवीय होना चाहिए। उनका उद्देश्य एक ऐसी प्रणाली बनाना है जहां “कानून का शासन” सिर्फ शब्द न होकर आम लोगों के लिए सचमुच अनुभव की जा सकने वाली चीज़ हो।
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