गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला की तलाक के बाद अपने पति से ज्यादा गुजारा भत्ते (Alimony) की मांग से जुड़ी याचिका खारिज कर दी। महिला नेतलाक के बाद पारिवारिक न्यायालय द्वारा दिए गए गुजारा भत्ते में वृद्धि और मई 2024 में अपने पति को ज्यादा गुजारा भत्ता देने का आदेश देने की मांग की थी। अदालत ने पति की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि उसके पास हाई सैलरी वाली नौकरी नहीं है और उस पर अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने बेटे (जो कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है) की भी जिम्मेदारी है।

23 साल पहले मार्च 2002 में दंपति का विवाह प्याज और लहसुन के सेवन को लेकर मतभेद के कारण टूट गया था। दरअसल, पत्नी एक विशेष स्वामीनारायण धार्मिक संप्रदाय का पालन करती थी जबकि पति का परिवार किसी भी आहार प्रतिबंध का पालन नहीं करता था। पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पारिवारिक न्यायालय में इस आधार पर आवेदन दायर किया था कि उसके साथ क्रूरता की गई थी और पत्नी ने उसे छोड़ दिया था जब वह अपने बच्चे के साथ अपने वैवाहिक घर को छोड़कर चली गई थी।

पारिवारिक न्यायालय ने तलाक का फैसला सुनाते हुए मई 2024 में एक आदेश पारित किया, जिसमें जुलाई 2013 से जुलाई 2020 की अवधि के लिए 8,000 रुपये प्रति माह का मासिक रखरखाव प्रदान किया गया। उसके बाद जुलाई 2020 से मेंटेनेंस को बढ़ाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया। महिला ने तर्क दिया था कि 18 महीने से धनराशि का भुगतान नहीं किया गया था।

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महिला की शिकायत मेंटेनेंस की राशि को लेकर थी

हाईकोर्ट में अपनी याचिका में, महिला के वकील ने दलील दी कि महिला तलाक के पहलू को चुनौती नहीं दे रही है क्योंकि विवाह विच्छेद उसे स्वीकार्य है लेकिन शिकायत मेंटेनेंस की राशि को लेकर थी। गुजरात उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति संगीता विशेन और न्यायमूर्ति निशा ठाकोर द्वारा 27 नवंबर को दिए गए मौखिक आदेश में याचिकाकर्ता महिला द्वारा दी गई दलीलों का उल्लेख है कि उसका पति अपने पिता के स्वामित्व वाली एक फैब्रिकेशन फैक्ट्री में साझेदार था और 80,000 रुपये से 1 लाख रुपये प्रति माह कमाता था जबकि महिला के पास अपना गुजारा करने के लिए कोई स्वतंत्र आय नहीं थी।

वहीं, दूसरी और पति द्वारा प्रस्तुत किए गए सबमिशन में यह तर्क दिया गया था कि महिला योग्य थी और प्रति माह 15,000 रुपये कमा रही थी और उसने इस तथ्य को दबा दिया था। उच्च न्यायालय के आदेश में यह भी कहा गया है कि पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ने रखरखाव राशि तय करते समय इस बात पर विचार किया था कि महिला ने पिछले बयान में यह भी कहा था कि वह काम कर रही थी। प्रतिवादी पति ने तर्क दिया था कि उसकी मां याचिकाकर्ता के लिए अलग भोजन बनाती थी , बिना प्याज और लहसुन के जबकि परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भोजन प्याज और लहसुन के साथ पकाया जाता था।

गुजरात उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया

मासिक आय के संबंध में पत्नी के दावे का विरोध करते हुए पति ने उच्च न्यायालय में दस्तावेज प्रस्तुत किए जिसमें बताया गया कि 2014 से 2019 के बीच उसकी वार्षिक आय 62,718 रुपये प्रति माह थी। उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया है, “इसके अलावा, इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि प्रतिवादी एक कमरे और रसोई वाले घर में रह रहा है जो उसकी आर्थिक स्थिति को दर्शाता है। इसके अलावा, प्रतिवादी इकलौता पुत्र होने के नाते अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारी लेता है और उसके पुत्र की भी, जो अब वयस्क हो गया है और कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है।”

हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि चूंकि वकील कोई भी विपरीत बात नहीं कह सके या यह सुझाव नहीं दे सके कि फैमिली कोर्ट द्वारा निकाले गए निष्कर्ष गलत हैं इसलिए इस न्यायालय की राय है कि अपीलकर्ता-पत्नी को 10,000 रुपये प्रति माह का भरण-पोषण देने में कोई त्रुटि नहीं कही जा सकती।अदालत के आदेश में पति के वकील के इस कथन पर भी गौर किया गया कि वह उसे स्थायी गुजारा भत्ते के रूप में एकमुश्त राशि देने को तैयार था लेकिन पत्नी ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी पति को निर्देश दिया कि वह भरण-पोषण की शेष राशि पत्नी को जमा कराए।

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