Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हिसार सेंट्रल जेल के जेलर से जरूरी जेल में बंद रामपाल को लेकर जरूरी सवाल पूछे हैं। हाई कोर्ट ने जेलर यह बताने का निर्देश दिया है कि जेल में बंद स्वयंभू संत रामपाल किस प्रकार हिंदू देवी-देवताओं को निशाना बनाकर किताबें लिख और वितरित कर रहे हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ ने मंगलवार को हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस और अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। जिसमें हिंदू देवी-देवताओं के कथित रूप से अभद्र चित्रण वाली पुस्तकों और अन्य साहित्य पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने, उन्हें जब्त करने और जब्त करने के साथ-साथ बीएनएस के प्रावधानों के तहत संत रामपाल के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई थी।
पीठ ने सहायक पुलिस आयुक्त से नीचे के पद के किसी व्यक्ति से एक पूरक हलफनामा भी मांगा है, जिसमें विभिन्न पुस्तकों के ठिकानों की खोज के लिए उठाए गए कदमों के साथ-साथ इस साल जुलाई में हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश के अनुसरण में एक्स कॉर्प और गूगल एलएलसी की साइटों सहित इंटरनेट साइट से सामग्री को हटाने के लिए उठाए गए कदमों का संकेत हो ।
याचिका में आरोप
यह याचिका अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री के माध्यम से दायर की गई है। रिट याचिका में आरोप लगाया गया है कि सनातनी हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से , प्रतिवादी (रामपाल और उनके मुद्रण और प्रचार निकायों सहित) नि:शुल्क पुस्तकें, साहित्य, पोस्टर और पर्चे वितरित कर रहे हैं, जिनमें घोर आपत्तिजनक और भड़काऊ भाषा का प्रयोग किया गया है और हिंदू देवी-देवताओं को बहुत ही ‘भद्दे’ और ‘शर्मनाक’ रूप में चित्रित किया गया है।
याचिका में जिन पुस्तकों का नाम दिया गया है, जिनमें जीने की राह , ज्ञान गंगा , गरिमा गीता की और अंध श्रद्धा भक्ति – खतरा-ए-जान शामिल हैं। इनको कथित अपमानजनक सामग्री के उदाहरणों के साथ उद्धृत किया गया है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि आरोपी इलेक्ट्रॉनिक संचार प्लेटफार्मों का उपयोग विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच वैमनस्य और दुश्मनी, घृणा और दुर्भावना की भावना को बढ़ावा देने के लिए कर रहे हैं। याचिका के अनुसार, सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए हानिकारक है।
याचिका में कहा गया है कि राज्य प्राधिकारियों से बार-बार अनुरोध बावजूद, विपक्षी दलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जो सनातन धर्म और हिंदू देवी-देवताओं को बहुत ही अभद्र, अश्लील और असभ्य तरीके से चित्रित कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि ऐसी सामग्री का ग्राफिक चित्रण भारत की सांस्कृतिक विरासत का अपमान है जिसे हम संरक्षित करना चाहते हैं…कथा व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिए छेड़छाड़ और शोषणकारी साहित्य चित्रण के साथ सामने आती है, ऐसी सामग्री नैतिक और आचार मानकों के क्षरण में अस्वीकार्य योगदान में विषाक्त कथा तैयार करती है। समाज के लोगों के संवेदनशील दिमाग को भड़काती है। “
याचिका में कहा गया है कि साहित्य की विषय-वस्तु और उसका प्रसार बीएनएस की धारा 196, 197, 294, 295, 299 और 302, आईटी अधिनियम की धारा 67ए, 67बी के साथ-साथ महिलाओं का अशिष्ट चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 3 और 4 के अंतर्गत आता है।
करीब 9 साल से जेल में हैं संत रामपाल
बता दें, गिरफ्तारी के बाद से रामपाल 8 साल, 8 महीने और 25 दिन जेल में बिता चुके हैं। उन पर हत्या का एक मामला और 2014 में सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कथित कोशिश का भी मामला चल रहा है।
10 जुलाई को जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने मामले की सुनवाई की थी। जिसमें राज्य को यह जवाब देने का निर्देश दिया था कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की धारा 98 के तहत प्रकाशनों को जब्त करने के संबंध में “अभ्यावेदनों पर कोई कार्रवाई शुरू की गई है”
मामले में बाद में दायर जवाब पर असंतोष व्यक्त करते हुए, नवगठित पीठ ने कहा कि राज्य (प्रतिवादी संख्या 1) का हलफनामा सभी मामलों में पूर्ण नहीं था और उसे और जानकारी की आवश्यकता थी।
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कोर्ट ने निर्देश दिया कि सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे के किसी व्यक्ति द्वारा पुष्टि किया गया एक पूरक हलफनामा 28 अक्टूबर, 2025 तक दायर किया जाना चाहिए। कोर्ट ने जेलर, हिसार सेंट्रल जेल-2, राजगढ़ रोड, आज़ाद नगर, हिसार गंगवा, हरियाणा को प्रतिवादी संख्या 13 के रूप में पक्षकार बनाने की अनुमति दी। मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर, 2025 को होगी।
याचिका में ऐसी सामग्री के प्रसार पर तत्काल सेंसरशिप और प्रतिबंध लगाने तथा यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है कि आगे कोई प्रकाशन या वितरण न हो। इसके अतिरिक्त, याचिका में कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि वह हिसार सेंट्रल जेल से संत रामपाल के कथित अवैध संचालन और कार्यप्रणाली की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का निर्देश दे।
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