सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस प्रथा की कड़ी आलोचना की, जिसमें कुछ मंदिरों के प्रशासक परंपराओं को तोड़कर अमीर और विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को भगवान के विश्राम के समय चुपके से स्पेशल पूजा करने की इजाजत देते हैं। उत्तर प्रदेश के वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए तीन न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने इस पर चिंता व्यक्त की।

मंदिर के कुछ सेवकों द्वारा दायर की गई नई याचिका में दर्शन के समय में बाद में किए गए बदलाव और मंदिर में कुछ पूजाओं को बंद करने पर सवाल उठाए गए हैं। जस्टिस जॉयमाल्य बागची और विपुल पंचोली की पीठ ने प्रशासनिक समिति को नोटिस जारी किया और याचिका की सुनवाई जनवरी 2026 के पहले सप्ताह में तय की।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दर्शन के तय समय के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दर्शन का समय मंदिर की परंपरा और रीति-रिवाजों का हिस्सा है। मंदिर का जनता के लिए खुला रहने का समय भी लंबे समय से चली आ रही परंपरा से जुड़ा है।

दीवान ने कहा कि समय में बदलाव होने से मंदिर के अंदर होने वाले अनुष्ठानों में भी बदलाव आया है। इसके कारण भगवान के सुबह जागने और रात में सोने का समय भी बदल गया है।

इसके बाद, CJI सूर्यकांत ने कहा, “दोपहर 12 बजे मंदिर बंद होने के बाद भी वे भगवान को एक मिनट भी आराम नहीं करने देते। वे इस समय भगवान का सबसे ज़्यादा शोषण करते हैं। सभी अमीर लोग जो सबसे ज़्यादा पैसे दे सकते हैं, उन्हें खास पूजा करने की इजाजत है।”

वरिष्ठ वकील ने कहा कि ऐसा नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी प्रथाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा, “माननीय न्यायाधीश महोदय, कृपया इस पर रोक लगाने की व्यवस्था करें। यह भगवान के आराम का बहुत ही जरूरी समय होता है। यह एक अहम बात है जिसे अदालत उठा रही है। समय-सारणी पवित्र है और इसका पालन होना चाहिए।”

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हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने फिर कहा कि इसी समय में ऐसी गलत प्रथाएं होती हैं। उन्होंने बताया कि जो लोग पैसे दे सकते हैं, उन्हें बुलाया जाता है और उनके लिए खास पूजाएं कराई जाती हैं। दीवान ने कहा कि बांके बिहारी मंदिर में ऐसी बातों को लेकर अभी तक किसी ने कोई शिकायत नहीं की है, लेकिन यह चिंता सही है और इसका अलग से समाधान निकाला जा सकता है।

बता दें, पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 के लागू होने पर रोक लगा दी थी। इस अध्यादेश के तहत मंदिर का प्रशासन एक ट्रस्ट को सौंपा गया था। इसके साथ ही कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति अशोक कुमार की अध्यक्षता में 14 सदस्यों की एक मंदिर प्रबंधन समिति का गठन किया था। यह समिति हाईकोर्ट द्वारा अध्यादेश की संवैधानिक वैधता पर फैसला होने तक मंदिर के अंदर और बाहर के रोज़मर्रा के कामकाज की देखरेख करेगी।

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