Akola Case Supreme Court Hearing: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अकोला दंगा मामले में महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर विभाजित फैसला (Split Verdict) सुनाया है। दरअसल, राज्य सरकार ने उस विशेष जांच दल (SIT) के गठन का विरोध किया था, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों से पुलिस अधिकारियों को शामिल करने की बात कही गई थी।
सरकार ने अपनी याचिका में जोर देकर कहा था कि पुलिस को धार्मिक आधार पर बांटना, राज्य की धर्मनिरपेक्ष नीतियों के खिलाफ जाएगा। राज्य का यह भी तर्क था कि “पुलिस का कोई धर्म नहीं होता।”
इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की डिवीजन बेंच कर रही थी। बड़ी बात यह रही कि सुनवाई के दौरान दोनों ही जजों की राय अलग-अलग रही। ऐसे में अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के पास भेजा जाएगा। अब यह तय किया जाएगा कि इस मामले को किसी बड़ी बेंच के पास भेजा जाए या फिर किसी तीसरे जज से राय ली जाए।
जानकारी के लिए बता दें कि महाराष्ट्र के अकोला में मई 2023 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। उस उपद्रव में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जबकि दो पुलिसकर्मियों समेत आठ लोग घायल हुए थे। दरअसल, एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर 13 मई 2023 को विवाद भड़क गया था।
उस समय अकोला के एसपी संदीप घुघे ने बताया था कि ओल्ड सिटी इलाके में मामूली बात पर दो समुदायों के बीच पत्थरबाजी शुरू हो गई थी। उपद्रवियों ने हिंसा के दौरान कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया था और कुछ ने थाने का घेराव भी किया था। इस हिंसा में महादेव गायकवाड़ नामक व्यक्ति की मौत हुई थी।
इसी मामले की सुनवाई के दौरान, 11 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “पुलिस वर्दी पहनने के बाद किसी भी अधिकारी को जाति और धर्म से ऊपर उठकर देखना चाहिए।” उस समय अदालत ने राज्य सरकार से SIT गठित करने को कहा था और उसमें हिंदू और मुस्लिम समुदायों के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल करने की बात कही थी।
जब राज्य सरकार ने इस निर्देश का विरोध किया और अदालत में हस्तक्षेप की मांग की, तो दोनों जजों की राय अलग-अलग निकलकर सामने आई। जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। उनका तर्क था कि “याचिका की मांग केवल इस हद तक सीमित है कि SIT की संरचना को धार्मिक पहचान के आधार पर तय किया जाना चाहिए या नहीं- यह विचारणीय मुद्दा है।”
वहीं, जस्टिस संजय कुमार ने सुनवाई के दौरान 2024 के बालराम सिंह बनाम भारत संघ मामले का जिक्र किया। उनका तर्क था कि “राज्य की मशीनरी विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों से मिलकर बनी होती है। ऐसे में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए, कुछ मामलों में सभी धर्मों के प्रतिनिधियों को साथ लेकर चलना आवश्यक है।” उनके अनुसार, सांप्रदायिक मामलों में ऐसी जांच टीमों का गठन जांच की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
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