शिकायतकर्ताओं के बयानों में विरोधाभास की ओर इशारा करते हुए भाजपा सांसद और रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यूएफआई) निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने अदालत में दलील दी कि उन्हें आरोपमुक्त कर दिया जाना चाहिए। भाजपा सांसद पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है।

बृजभूषण की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव मोहन ने दलील दी कि बयानों में विरोधाभास है। राजीव मोहन ने दोहराया कि आरोपियों के खिलाफ 6 पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए गठित निरीक्षण समिति, पॉक्सो अधिनियम के तहत गठित आंतरिक शिकायत समिति के बराबर थी।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि प्रथमदृष्टया आरोपी के खिलाफ मामला बनता है तो पॉक्सो अधिनियम के तहत बनी समिति को 7 दिन के भीतर मामले को पुलिस को भेजना चाहिए था। राजीव मोहन ने कहा, ‘चूंकि निरीक्षण समिति ने प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं पाया, इसलिए कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई…।’

राजीव मोहन ने कहा, ‘यह सीधे तौर पर दोषमुक्ति का मामला है। उन्होंने तर्क दिया कि एफआईआर की सिफारिश न करना इस तथ्य के बराबर है कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई मामला नहीं पाया गया।’ अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट हरजीत सिंह जसपाल ने राजीव मोहन से पूछा कि क्या उन्होंने निगरानी समिति से दोषमुक्ति की मांग की थी, जिस पर राजीव मोहन ने हां में जवाब दिया।

अलग-अलग पेशी पर अलग-अलग दलील

हालांकि, पिछली सुनवाई में राजीव मोहन ने बताया था कि समिति ने आरोपियों को बरी कर दिया है। राजीव मोहन ने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा हूं कि समिति मुझे बरी कर दिया है, मेरे खिलाफ आपराधिक कार्यवाही नहीं हो सकती। मुझे न तो अपराधी बताया गया है और न ही दोषमुक्त किया गया है।’

हालांकि, सरकारी वकील अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) अतुल कुमार श्रीवास्तव ने दलील दी कि निगरानी समिति पॉक्सो अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति के बराबर नहीं थी और इसलिए आरोपी को कोई सुविधा नहीं दी गई।

गठित समिति में होना चाहिए था NGO का एक सदस्य

पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 का उल्लेख करते हुए अतुल कुमार श्रीवास्तव ने दलील दी कि कानून के तहत गठित समिति में किसी एनजीओ के एक सदस्य का होना जरूरी है, जबकि निरीक्षण समिति में ऐसा नहीं था।

उन्होंने कहा, ‘निगरानी समिति का संविधान ही पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 के अनुपालन में नहीं है, इसलिए आरोपी को कोई सुविधा नहीं मिली।’ उन्होंने बताया कि आरोप के स्तर पर पीड़ितों के बयानों में विरोधाभासों के बारे में बात करना बेमानी है और साक्ष्य के स्तर पर विरोधाभासों को संबोधित किया जाना चाहिए।