वीरेंद्र सहवाग को क्रिकेट के मैदान में कभी कोई गेंदबाज डरा नहीं पाया। फिर चाहे वह शोएब अख्तर या वसीम अकरम जैसे तूफानी गेंदबाज ही क्यों न रहे हों। नजफगढ़ के नवाब ने अपने बल्ले से बड़े-बड़े बॉलर्स की गेंदों की बखिया उखेड़ दी। हालांकि, कई बार ऐसा हुआ, जब उन्हें डर लगा, लेकिन वह क्रिकेट का मैदान नहीं, बल्कि हवा में उड़ता हुआ प्लेन था। सहवाग ने विक्रम साठिया के शो वॉट द डक (What The Duck) के सीजन 2 खुद यह बात स्वीकार की थी।

विक्रम ने सहवाग से पूछा, ‘मैंने आपकी आंखों में कभी खौफ नहीं देखा। लेकिन एक बार जब हम प्लेन से उड़ रहे थे, बारिश हो रही थी, प्लेन हिल रहा था जोर-जोर से। तब मुझे लगा था कि आपकी आखों में कहीं कुछ थोड़ा सा डर है। सही है?’ इस पर वीरेंद्र सहवाग ने कहा, ‘मरने से सबको डर लगता है। पता नहीं वह कब हिलता-डुलता नीचे गिर जाए। मुझे जहाज में बैठकर जाना बिल्कुल पसंद नहीं होता।’ उन्होंने बताया, ‘एक बार हम लोग दिल्ली से दुबई जा रहे थे। 1998 की बात है। हमारा जहाज लगभग एक हजार फीट नीचे चला गया था। उसमें जितने लोग बैठे थे, सबने एक ही आवाज लगाई थी कि आई मम्मी।’

सहवाग ने बताया, ‘उस समय पहली बार अहसास हुआ कि हमारी मां कितनी इम्पार्टेंट है। चाहे कुछ भी हो आपके साथ, सबसे पहले आप अपनी मां को याद करते हैं। खैर डर सबको लगता है। कहते हैं कि डर के आगे जीत है।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने बहुतों को देखा। हम लोग जोहानिसबर्ग से डरबन जा रहे थे, वर्ल्ड कप 2003 के लिए। बहुत काले बादल थे। बारिश हो रही थी।’

सहवाग ने बताया, ‘लगभग सवा-डेढ़ घंटे की फ्लाइट थी। पूरे समय फ्लाइट हिलती रही। ना पानी ना खाना, कुछ सर्व नहीं हुआ। जॉन राइट उस समय पूरे समय जीसस को याद करते रहे थे। ओ जीसस हेल्प मी। ओ जीसस हेल्प मी।’

वीरेंद्र सहवाग ने विक्रम को बताया, ‘कुछ किस्से ऐसे-ऐसे घटे हैं जहाज में। हालांकि, तब मुझे इतना अहसास नहीं हुआ, क्योंकि मैं जवान था, यंग था, फर्क नहीं पड़ा। जब से शादी हुई, बच्चे हुए, तब से शायद डर और बढ़ता चला गया।’